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भिक्षु कौन? निःसंगता बड़ा मौलिक तत्त्व है; कठिन भी बहुत है। क्योंकि हम सदा संग चाहते हैं। संग की चाह हममें बड़ी गहरी है-कोई साथ हो। अकेले होने में बड़ा बुरा लगता है। अकेला कोई भी नहीं होना चाहता। आप जब भी अकेले छूट जाते हैं, तब बेचैनी अनुभव करते हैं कि क्या करें, क्या न करें। कुछ सूझता नहीं। अकेले होने में बड़ी मुसीबत है।
एक बहुत बड़ा संगीतज्ञ, लियोपोल गोडवस्की, अनिद्रा से पीड़ित था। और अनिद्रा से पीड़ित लोगों की तकलीफ नींद का न आना नहीं है, रात अकेला छूट जाना है। सारी दुनिया सो गयी, पत्नी घुरट ले रही है। बच्चे मजे से सोये हुए हैं। और आप जग रहे हैं। बिलकुल अकेले रह गये। सारा संसार खो गया। धीरे-धीरे रास्ते का ट्रैफिक बन्द हो गया। शोरगुल शान्त हो गया। अब कहीं कोई
लता नहीं। पशु-पक्षी तक सो गये। वृक्ष तक चुप हो गये। अब आप अकेले रह गये। जैसे पृथ्वी समाप्त हो गयी तीसरे महायुद्ध में। सब लाशें पड़ी हैं। और आप अकेले जग रहे हैं। ___ लियोपोल गोडवस्की के संस्मरणों में लिखा गया है कि उसका लड़का उसके पास रहता था। तो रात को जब उसे बहुत मुश्किल हो जाती-और लड़का बहुत भयंकर सोनेवाला था; जोर से घुर्राटे भरता, और बड़ी गहरी नींद में अगर कोई भूकम्प हो जाये, तो भी जगे नहीं तो लियोपोल रात में दो-चार बार उसके पास जाकर कहता, उसे जोर से हिलाता और कहता : क्यों बेटा, आज तमको भी नींद नहीं आयी क्या? ___ वह सो रहा है; घुटि ले रहा है। उसको हिलाता कि क्यों बेटे, आज तुमको भी नींद नहीं आयी क्या? पहले उसे जगा देता। उसके बेटे ने लिखा है कि मैं चकित था कि यह मामला क्या है? लेकिन कुल मामला इतना था, आदमी साथ खोजता है। अगर दूसरे को भी नींद नहीं आयी तो हम संगी-साथी हो गये।
दो तो हैं कम से कम-साथ हैं। हम जीवन में जिस वृत्ति से सर्वाधिक ग्रसित हैं, वह है संगी खोजने की, साथी खोजने की। अकेला होना बड़ा कठिन मालूम होता है—क्यों?...कई कारणों से। ___एक : जब कोई संगी-साथी होता है, तो हम दुख का सारा दायित्व उस पर दे सकते हैं। जब कोई संगी-साथी नहीं है, तो सारा दुख अपने ही हाथों पैदा किया हो जाता है। इसे झेलना बहुत कठिन है। ___ जब कोई संगी-साथी होता है, तो उसमें हम अपने को भूल सकते हैं। वह नशे का काम करता है। जब कोई संगी-साथी नहीं होता,
तो भूलने की कोई जगह नहीं रह जाती। ___ जब कोई संगी-साथी होता है, तो हम अपनी झूठी तस्वीरें खड़ी कर सकते हैं। क्योंकि हम अभिनय कर सकते हैं उसके सामने। हम धोखा दे सकते हैं उसको। और उसको धोखा देकर अपने को धोखा दे सकते हैं।
लेकिन, जब कोई संगी-साथी नहीं, कोई दर्पण नहीं, तो धोखा किसको देना? आदमी की नग्नता. उसकी पशता. उसके भीतर जो भी है बुरा-भला-सब सामने आ जाता है। उससे बचने का कोई उपाय नहीं रहता। उससे दुख होता है; नरक अनुभव होता है। अकेला आदमी अपने को नरक में अनुभव करता है। __ महावीर कहते हैं : असंगता भिक्षु का लक्षण है; संगी की तलाश संसारी का लक्षण है। अकेले होने में आनन्द; और जितनी देर अकेला होना मिल जाये, उतनी प्रसन्नता। और जितनी देर संग-साथ हो, अनिवार्य हो तो ही, अन्यथा उसको विदा करना। उतने ही देर के लिए, जितना बिलकुल जरूरी हो, संग-साथ ठीक। अधिक समय असंग बीते। और धीरे-धीरे भीतर असंगता ऐसी बढ़ जाये कि जब कोई मौजूद भी हो, तो भी संन्यासी अपने को अकेला ही अनुभव करे। वह दूसरे को अपने भीतर न ले। वह भीड़ में भी खड़ा
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