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भिक्षु कौन? मैंने सुना है कि मुल्ला नसरुद्दीन के गांव में सम्राट आ रहा है। और गांव का वह प्रतिष्ठित आदमी था। तो गांव के लोगों ने कहा कि तुम्हीं उसका स्वागत करना। लेकिन नसरुद्दीन, जरा खयाल रखना; कुछ ऐसी-वैसी बात मत कर देना। सम्राट है, नाराज न हो जाये।
तो नसरुद्दीन ने कहा : फिर बेहतर यही होगा कि तुम मुझे बता ही दो कि मैं क्या कहूं। जिसमें कि गलती का कोई सवाल ही न रहे। तो दरबारियों ने पूरा इंतजाम कर लिया; सम्राट को कहा कि आप दो ही सवाल पूछना इस आदमी से। और वह दो ही जवाब देगा। ज्यादा झंझट खड़ी नहीं करनी है। तो आप उससे पूछना कि तुम्हारी उम्र क्या है? तो वह अपनी उम्र बता देगा। उसकी उम्र सत्तर साल है। और फिर आप उससे पूछना कि तुम धर्म में कब से रुचि ले रहे हो? कब से तुम मौलवी, मुल्ला हो गये हो? वह बीस साल से धर्म में रुचि ले रहा है। तो वह कहेगा, बीस साल से। बस, ऐसे औपचारिक बातें पक्की कर लेना।
नसरुद्दीन को भी समझा दिया गया। लेकिन सब गडबड हो गयी बात। क्योंकि नसरुद्दीन ने बिलकल तय कर लिया कि पहले का उत्तर सत्तर साल, दूसरे का उत्तर बीस साल। सम्राट गलती कर गया। उसने दूसरा सवाल पहले पूछ लिया। उसने पूछा कि नसरुद्दीन, तुम धर्म में कितने दिन से रुचि ले रहे हो? कब से मुल्ला हो? नसरुद्दीन ने कहा : सत्तर साल से! और सम्राट ने पूछा : और तुम्हारा जन्म कब हुआ? तुम्हारी उम्र कितनी है? नसरुद्दीन ने कहा : बीस साल!
सम्राट ने कहा : नसरुद्दीन, तुम पागल तो नहीं हो? नसरुद्दीन ने कहा कि मैं तो ठीक ही जवाब दे रहा हूं, पागल वह है जो गलत सवाल
पूछ रहा है।
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जिंदगी रोज बदल रही है। आपकी आज की चिंता कल काम नहीं आयेगी। और अगर आप बहुत मजबूत होकर बैठ गये, तो आप कल पायेंगे कि उत्तर ही सब गलत हुए जा रहे हैं। क्योंकि सवाल ही नये हैं।
महावीर कहते हैं, भिक्षु वह है, जो चिंता नहीं करता। जो बीत गया, उसे जान लेता है कि बीत गया। जो नहीं आया, जानता है अभी नहीं आया। जो सामने है, उसमें जीता है। __ और ध्यान रहे, जो सामने है, उसमें जो जी लेता है उससे भूलें नहीं होतीं। भूलें होती ही इसीलिए हैं कि हम 'यहां' तो मौजूद नहीं होते, जहां जीना है। या तो पीछे होते हैं, या आगे होते हैं। हम यहां' बेहोश होते हैं। जो न पीछे है, न आगे है-जो निश्चित है, वह 'यहां' है। अपनी पूरी चेतना के साथ यहां' मौजूद है, उससे भूलें नहीं होंगी।
चिंताओं से भूलें नहीं मिटती, चिंताओं के कारण भूलें होती हैं। इसलिए अकसर यह होता है कि विद्यार्थी परीक्षाभवन में जाता है और सब गड़बड़ हो जाता है। बाहर तक उसे सब मालूम था कि क्या क्या है। परीक्षाभवन में बैठते ही सब अस्त व्यस्त हो गया। परीक्षा हाल से निकलते ही फिर सब ठीक हो जाता है। यह बड़े आश्चर्य की बात है। परीक्षा का हाल बड़ा चमत्कारी है। और बाहर आकर उसको ठीक-ठीक उत्तर आने लगते हैं। और पहले भी आ रहे थे। और एक तीन घण्टे के लिए सब गड़बड़ हो गया, क्या कारण
तीन घण्टे वह इतना चिंतित हो गया,...इतना चिंतित हो गया कि उस चिंता के कारण जो भी सामने है, उससे संबंध नहीं जुड़ पाता। तीन घण्टे पहले इतनी चिंता नहीं थी। तीन घण्टे के बाद फिर चिंता नहीं रह जायेगी। चिंता हमारे जीवन को विकृत कर रही है। और हम सीधे संबंधित नहीं हो पाते। समस्याएं हल नहीं होतीं, उलझती चली जाती हैं।
महावीर कहते हैं, भिक्ष तु वही है जो चिंता नहीं करता, जो जीवन की चिंता नहीं करता। जीवन जैसा आता है, उसके साथ जो भी स्पांटेनियस, सहज-स्फूर्त घटना घटती है, घटने देता है। न तो पीछे के लिए पश्चात्ताप करता है, और न आगे के लिए योजना करता है।
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