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पांच समितियां और तीन गुप्तियां सो गया ! ___ महावीर ने कहा है : मैं उसी को साधु कहता हूं, जो जागा हुआ है; असाधु उसको कहता हूं, जो सोया हुआ है । सुत्ता अमुनि, असुत्ता मुनि-जो जागा हुआ है, असोया हुआ है वह 'मुनि', जो सोया हुआ है वह 'अमुनि' ।
तो आप क्या करते हैं. यह बड़ा सवाल नहीं है। कैसे करते हैं...? होशपर्वकया बेहोशी में। यह भी हो सकता है कि दान करनेवाला असाधु हो, अगर बेहोशी से कर रहा है; और चोरी करनेवाला साधु हो जाये, अगर होशपूर्वक कर रहा है।
मैं यह नहीं कह रहा हूं कि आप जाकर होशपूर्वक चोरी करें। मैं यह कह रहा हूं इतनी दूर तक संभावना है होश की, कि अगर होशपूर्वक कोई चोरी करे तो भी साधु होगा, और बेहोशी से कोई दान दे तो भी असाधु होगा । सचाई तो यह है कि होशपूर्वक चोरी हो नहीं सकती और न बेहोशी में दान हो सकता है। बेहोशी का दान झूठा है, उसके प्रयोजन दूसरे हैं । होश में चोरी असंभव है, क्योंकि चोरी के लिए बेहोशी अनिवार्य तत्व है। जो भी बुरा है जीवन में, उसके लिए मूर्छा चाहिए। __ इसलिए जब भी आप बुरा करते हैं, तब आप मूर्छित होते हैं । जब भी आप मूर्छित हो जाते हैं, बुरा करने की संभावना प्रगाढ़ हो जाती है। हिंसा में, हत्या में, झुठ में, चोरी में, पाप में, वासना में आप होश में नहीं होते, आप बेहोश हो जाते हैं। कुछ भीतर आपके सो जाता है। आप पछताते हैं बहुत बार, जब जागते हैं, जब क्षणभर को होश वापिस लौटता है, तो खयाल आता है—'यह मैंने क्या किया? यह मुझे नहीं करना था ! और यह मैं जानता था कि यह नहीं करना है ! न मालम कितनी बार निर्णय किया था कि नहीं करूंगा, फिर भी हो गया !'... कैसे हुआ आपसे यह...? निश्चित ही बीच में किसी धुएं ने घेर लिया, आपका चित्त खो गया निद्रा में। ___ महावीर कहते हैं—साधु ईर्या से चले, उठे-बैठे, प्रवृत्ति करे। जो भी करे, क्षुद्रतम प्रवृत्ति भी होशपूर्वक हो। क्यों? क्योंकि प्रवृत्ति दूसरे से जोड़ती है। बेहोश आदमी के संबंध हिंसात्मक होंगे। वह दूसरे को चोट पहुंचा देगा । जैसे कोई आदमी नशे में यहां से चले और आपके पैर पर पैर रख दे. तो आप क्या कहेंगे? कहेंगे कि यह आदमी नशे में है। लेकिन हम ऐसे ही जीवन में
नशे बहुत तरह के हैं, तरह-तरह के हैं। हर आदमी का अपना-अपना नशा है । कोई आदमी धन के नशे में चल रहा है। देखें-जब किसी के पास धन होता है, तो उसकी चाल अलग होती है । आपके खीसे में भी जब पैसे ज्यादा होते हैं तो आपकी चाल वही नहीं होती। आप अनुभव करना । जब खीसे में पैसा नहीं होता तो आप और ढंग से चलते हैं। नशा ही नहीं है । चाल में जान नहीं मालूम पड़ती। जब खीसे में पैसे होते हैं. तब रीढ सीधी हो जाती है ! कंडलिनी जागत हो जाती है ! आप बहत अकडकर चलते हैं।
राजनीतिज्ञ जब पद पर होता है, तब उसकी चाल देखें; जैसे कपड़े पर नया-नया कलफ किया गया हो ! और जब पद से उतर जाता है, तब उसकी चाल देखें; जैसे रातभर उन्हीं कपड़ों को पहनकर सोया हो ! सब अस्त-व्यस्त हो जाता है। सब चमक चली जाती है। सब शान चली जाती है। धनी निर्धन हो जाये तो देखें । स्वस्थ आदमी बीमार हो जाये तो देखें।
नशे हैं। कोई ज्ञान के नशे में है-तब ज्ञान की अकड़ होती है कि मैं जानता हूं । हजार तरह के नशे हैं। नशा उसको कहते हैं, जिससे आप अकड़ते हैं, और बेहोश होते हैं, और होशपूर्वक नहीं चल पाते।
साधना का अर्थ ही है कि नशों को तोड़ना। जहां-जहां चीजें हमें बेहोश करती हैं, उन-उन से संबंध विच्छिन्न करना, और एक ऐसी सरल स्थिति में आ जाना जहां सिर्फ चेतना हो और किसी तरह की बेहोशी के तत्व से संबंध न रहा हो।
धन में खतरा नहीं है। धन से जो नशे से भर जाते हैं, उसमें खतरा है । तो निर्धन होने से काम न चलेगा; क्योंकि आदमी इतना चालाक है कि निर्धन होने का भी नशा हो सकता है।
सुकरात से मिलने एक फकीर आया। उस फकीर ने चीथड़े पहन रखे थे, जिनमें छेद थे। उस फकीर का नियम था कि अगर कोई
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