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महावीर-वाणी भाग : 2
पुरुष? वह अजायबघर का आदमी कहता है कि हमने कभी फिक्र नहीं की। यह तो हिपोपोटेमस को पता लगाने की बात है। अपने को करना भी क्या है? तुम पहले आदमी हो, जो इस चिंता में पड़े हो! __ निश्चित ही, आदमी को क्या मतलब है कि कौन स्त्री है और कौन पुरुष है; कौन मादा है, कौन नर है। मादा और नर की उत्सुकता तो वासना से पैदा होती है। इसलिए आप दुनिया भर की मादाओं को देखते रहें, कोई रस नहीं मालूम पड़ता, लेकिन मनुष्य की मादा में रस मालूम पड़ता है। ___ आप यह मत सोचना कि ऐसा ही दुनिया के जानवर मनुष्य की मादाओं में रस लेते हैं। उन्हें कोई मतलब नहीं है। एक हाथी चला जा रहा है, कितनी ही सुंदर स्त्री हो, क्या मतलब है? क्या प्रयोजन? प्रयोजन और अर्थ तो आता है भीतर की वासना से, और भीतर की वासना हो जितनी प्रगाढ़, उतना ही विपरीत यौन का व्यक्ति मूल्यवान होता चला जाता है। जिनकी कामवासना प्रगाढ़ है, अगर वे पुरुष हैं, तो स्त्री के अतिरिक्त उनका कोई परमात्मा नहीं; अगर वे स्त्री हैं तो पुरुष के अतिरिक्त उनका कोई परमात्मा नहीं। ___ मुल्ला नसरुद्दीन अपने मित्र पंडित रामचरणदास के साथ बैठा हुआ है। चर्चा चल रही है। दोनों शराब पी रहे हैं। जब नशा थोड़ा गहरा हो गया, तो पंडित रामचरणदास ने कहा कि 'नसरुद्दीन, अगर तुम्हें एक एकांत निर्जन द्वीप पर महीने भर अटक जाना पड़े, नाव डूब जाये, कोई कारण हो जाये, या तुम्हें भेज दिया जाये, तो तुम अपने साथ क्या ले जाना पसंद करोगे? श्रेष्ठतम चीज कौन-सी है, जिसे तुम अपने साथ ले जाना पसंद करोगे? व्हाट डू यू कनसीडर दि बेस्ट? नसरुद्दीन ने कहा 'साफ है कि मैं पूरी मधुशाला, पूरे गांव की मधुशाला अपने साथ ले जाना पसंद करूंगा।' ___ 'और पंडितजी, आप अगर ऐसी हालत में उलझ जायें', नसरुद्दीन ने पूछा, 'तो आप क्या करेंगे? आप क्या ले जाना पसंद करेंगे?' पंडित रामचरणदास ने थोड़ा झिझकते हुए कहा, 'हे...मा...मा...लिनी!' _वे इतना ही कह पाये थे कि नसरुद्दीन ने जोर से चूंसा मारा टेबल पर; टेबल उलट दी और कहा कि 'गलत! स्टिक टु दि टर्स । यू सेड दि बेस्ट, नॉट दि वेरी बेस्ट । शर्त पर बंधे रहो । तुमने कहा था श्रेष्ठ, सबसे श्रेष्ठ नहीं, नहीं तो हम ही हेमामालिनी को न ले जाते!' __ आदमी का मन कामवासना से भरा हो, तो स्त्री परमात्मा है, पुरुष परमात्मा है । सारा धर्म वहीं समाप्त हो जाता है। कामवासना गहरी हो, तो कामवासना के अतिरिक्त कोई धर्म नहीं है। बाकी सब धर्म बहाना है, झूठ है। धर्म का जन्म तो तभी शुरू होता है, जब हम विपरीत की वासना से हटना शुरू होते हैं। और यह हटाव ब्राह्मणत्व है।
साक्षी-भाव से, शरीर से फासला बढ़ने से जैसे ही, जितने ही आप अपने शरीर से दर होंगे. उतने ही आप दसरे के शरीर से दर हो जायेंगे। इसे आप गणित समझें भीतर का । जितना आपको दूसरे का शरीर आकर्षक मालूम होता है, उसका अर्थ है कि अपने शरीर से उतने ही जुड़े हैं; क्योंकि आपके शरीर को ही दूसरे का शरीर आकर्षक मालूम होता है, आत्मा को नहीं । आत्मा को शरीर से कोई संबंध नहीं है। जैसे-जैसे आप पीछे हटते हैं अपने शरीर से, वैसे-वैसे दूसरे के शरीर भी खोने लगते हैं। इस कामवासना के धुएं के खो जाने पर जो प्रकाश जन्मता है, इस अंधेरे से हटकर, शरीर के अंधेपन और अंधेरे से हटकर जो रोशनी उपलब्ध होती है, महावीर कहते हैं, वही ब्राह्मण है।
'जिस प्रकार कमल जल में उत्पन्न होकर भी जल से लिप्त नहीं होता, उसी प्रकार जो संसार में रहकर भी काम-भोगों से सर्वथा अलिप्त रहता है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं।
इसमें कई बातें समझने-जैसी हैं। 'जिस प्रकार कमल जल में उत्पन्न होकर भी जल से लिप्त नहीं होता...!' आदमी पैदा तो वासना में ही हुआ है । कामवासना स्त्रोत है जीवन का । उसकी निंदा की भी कोई जरूरत नहीं है । निंदा वे ही करते हैं, जो उससे परेशान हैं । उससे
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