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वर्णभेद जन्म से नहीं, चर्या से
वहां मुनि का जन्म होता है।
तप से
मनुष्य तपस्वी बन जाता है; लेकिन तप की जो मैंने बात कही, वह खयाल में रखना । भीतर की अग्नि को जगाकर- -जो चेतना के स्वर्ण को उसमें निखार लेता है, उस निखरी हुई चेतना को - जो जीवन-जगत के संघर्ष में – जो कसौटी पर कस लेता है, उसे महावीर तपस्वी कहते हैं ।
'मनुष्य कर्म से ही ब्राह्मण होता है, कर्म से ही क्षत्रिय होता है, कर्म से ही वैश्य होता है और शूद्र भी अपने किये गये कर्मों से ही होता है। अर्थात जन्म से कोई वर्ण-भेद नहीं है। जो जैसा करता है, वह वैसा ही हो जाता है।'
ऊंच या नीच चेतना की अवस्थाएं हैं, शरीर की नहीं ।
'इस भांति पवित्र गुणों से युक्त जो द्विजोत्तम ( श्रेष्ठ ब्राह्मण) हैं, वास्तव में वे ही अपना और दूसरों का उद्धार करने में समर्थ हैं।' तीन बातें खयाल में ले लें
एक, कहां आप पैदा हुए हैं, किस घर में पैदा हुए हैं, किस कुल में पैदा हुए हैं, यह बात बिलकुल गौण है। इसे बहुत मूल्य मत दें। यह मूल्य महंगा पड़ सकता है। ब्राह्मण घर में पैदा होकर अगर आपने समझ लिया कि मैं ब्राह्मण हो गया, तो ब्राह्मण होने की आपकी जो संभावना थी, वह बंद हो गयी।
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महावीर द्वार को खोलते हैं। वे कहते हैं, जन्म के साथ तुम समाप्त नहीं हो गये, जन्म के साथ सिर्फ तुम शुरू हुए हो। मौत के साथ अध्याय बंद होगा । लेकिन जो कहता है कि मैं जन्म से ब्राह्मण हूं, उसने अध्याय बंद कर लिया। अब करने को कुछ नहीं बचा; आखिरी बात पा ली गयी। महावीर कहते हैं, जन्म शुरुआत है संभावनाओं की। उनको अंत मत करो, बंद मत करो। सबकी संभावनाएं खुली । द्वार खुला है। यात्रा करनी जरूरी है। और यात्रा पर निर्भर होगा कि आप क्या हैं।
बर्नार्ड शा से किसी ने पूछा, अस्सी वर्ष की उम्र थी उसकी तब, कि क्या तुम अपने संबंध में अब कोई सत्य कह सकते हो ? बर्नार्ड शा ने कहा कि जब तक मैं मर न जाऊं, तब तक संभावनाएं खुली हैं। जिस दिन मैं मर जाऊं, उसी दिन अध्याय बंद होगा। उसी दिन कोई निर्णय लिया जा सकता है। तब तक कोई निर्णय नहीं लिया जा सकता।
जीवन एक खुला है । उसमें सब खुला है। बंद थी भारत में व्यक्तित्व की संभावना । शूद्र शूद्र था; और कुछ होने का उपाय नहीं था उसे । उसकी जिंदगी बस झाड़-बुहारी लगाने में, मल-मूत्र साफ करने में, जूते चमड़े का सामान बनाने में व्यतीत होनेवाली थी । करोड़ों-करोड़ों लोगों का जीवन एकदम बंद था। वहां से इंचभर हटने का कोई उपाय नहीं था । हिलने-डुलने की कोई सुविधा नहीं थी । समाज स्टैटिक था, अवरुद्ध था, जैसे तालाब का पानी जम गया हो। नदी की धारा नहीं थी। महावीर ने तालाब के पानी को तोड़ा, धारा बनायी - शूद्र भी ब्राह्मण हो सकता है, और ब्राह्मण को भी कहा कि तू आश्वस्त मत रह, क्योंकि ब्राह्मण होना भी एक अर्जन है। तूने कुछ न किया तो तू भी शूद्र हो जायेगा; तू भी शूद्र रह जायेगा ।
महावीर ने ब्राह्मण की आस्था तोड़ दी ताकि वह भी खुले और बह सके; और शूद्र का बंधन तोड़ दिया ताकि वह भी खुले और बह सके। लेकिन जैन महावीर के पीछे चल नहीं पाये ।
जैनों में यद्यपि कोई वर्ण नहीं है; जैनों के भीतर कोई जैन ब्राह्मण, जैन क्षत्रिय, जैन वैश्य या जैन शूद्र नहीं हैं, लेकिन जैन अपने को वैश्य मानते हैं; और घर में अगर पूजा करवानी हो, विवाह करवाना हो तो ब्राह्मण को निमंत्रित करते हैं; और घर का अगर पाखाना साफ करवाना हो तो शूद्र को खोजते हैं।
जैन भी महावीर को मान नहीं सके। जैनों के लिए तो कोई शूद्र नहीं होना चाहिए। कैसी दुर्घटना इतिहास में घटती है कि जब
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