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भिक्षु की यात्रा अंतर्यात्रा है
मैं किसी पर भी श्रद्धा नहीं करता; मैं ठीक उसी अवस्था में पहुंच गया हूं, जिसकी कृष्णमूर्ति बात कर रहे हैं। ___ महावीर और कृष्णमूर्ति की, दोनों की बात अगर आपके जीवन में मिल जाये, तो ही आप पूरे हो पायेंगे। महावीर प्राथमिक बात कह रहे हैं, क्योंकि प्रथम से ही शुरू करना है। कृष्णमूर्ति अंतिम बात कह रहे हैं, जहां पूरा करना है । वह कहना ठीक है । लेकिन जिनसे वे कह रहे हैं, उनमें अकसर गलत लोग हैं। उनमें वे ही लोग हैं, जो श्रद्धा करने में असमर्थ हो गये हैं। जिनकी श्रद्धा बिलकुल सूख गयी है। जो नपुंसक हैं श्रद्धा की दृष्टि से, इंपोटेंट हैं। जिनमे कोई संभावना नहीं है। जो अपने को समर्पित कर ही नहीं सकते, वे कृष्णमूर्ति को सनकर प्रसन्न होते हैं। वे कहते हैं, तब हमारे लिए भी मार्ग है। कोई चिन्ता की बात नहीं । किसी को गरु बनाने की जरूरत नहीं, अपने ही पैरों पर चलना है।
ये वे ही छोटे बच्चे हैं, जो अभी पालने में पड़े हैं, और जिनको कोई समझा दे कि बाप का हाथ मत पकड़ना, क्योंकि हाथ पकड़ने से आदमी निर्भर हो जाता है - ये बच्चे झूलनों में ही पड़े रह जायेंगे; और ये जिन्दगीभर घुटनों से ही सरकते रहेंगे। अतः कोई जो खड़ा है अपने पैरों पर, और कोई जो इनसे काफी बड़ा है, जो इनको भरोसा दे सके; जिसको देखकर इनको आस्था आये और इनको लगे कि ठीक है, जब यह आदमी खड़ा है, और इतना शक्तिशाली आदमी खड़ा है, तो इस पर भरोसा करना उचित है।
बाप से ज्यादा शक्तिशाली आदमी बेटे के लिए और कोई नहीं होता । मुल्ला नसरुद्दीन के जीवन में एक उल्लेख है । उसका बेटा बडा होने लगा। एक दिन उसने अपने बेटे को कहा कि तू इस सीढ़ी से ऊपर चढ़ जा। बेटा ऊपर चढ़ गया। वह सदा मुल्ला नसरुद्दीन की बात मानता था। बेटे के ऊपर चढ़ जाने के बाद नसरुद्दीन ने सीढ़ी अलग कर ली, और बेटे से कहा कि अब तू कूद पड़। बेटे ने कहा कि कूद पडूं? हाथ-पैर टूट जायेंगे!
नसरुद्दीन ने कहा कि मैं मौजूद हूं, तेरा पिता। मैं तुझे संभाल लूंगा । कूद पड़ डर मत । लड़के ने बड़ी हिम्मत बांधी कई बार, और फिर रुक गया। उसने कहा, 'लेकिन दूरी काफी है। अगर जरा चूका, तो हड्डी-पसली एक हो जायेगी।'
नसरुद्दीन ने कहा कि जब मैं मौजूद हूं, तो तू डरता क्यों है? लड़का हिम्मत करके, बाप पर भरोसा करके कूद गया।कूदते ही नसरुद्दीन दूर हो गया। लड़का नीचे गिरा, दोनों पैर लहूलुहान हो गये। उस लड़के ने कहा कि क्या मतलब?
नसरुद्दीन ने कहा, अपने बाप पर भी अब भरोसा मत करना । अब किसी पर भरोसा नहीं, अपने बाप का भी नहीं। अब तुझे मैं स्वतंत्र करता हूं। अब तू अपनी बुद्धि से चल । अब बहुत हो गया।
एक दिन गुरु भी कहेगा कि कूद पड़, अब किसी पर भरोसा नहीं। लेकिन यह संभावना तभी है, जब भरोसा पैदा हुआ हो। श्रद्धा चाहिए, ताकि अंततः श्रद्धा से मुक्त हुआ जा सके। और जो श्रद्धा नहीं कर पाते, वे श्रद्धा-मुक्ति को कभी उपलब्ध नहीं होते। कृष्णमूर्ति को सुननेवाले लोग श्रद्धा से कभी मुक्त नहीं हो सकेंगे। यह बात बड़ी उलटी मालूम पड़ेगी लेकिन जिन्होंने श्रद्धा ही नहीं की, वहां उनके पास मुक्त होने को भी कुछ नहीं है। महावीर पर श्रद्धा करनेवाला मुक्त हो सकेगा, क्योंकि मुक्त होना श्रद्धा के भीतर ही छिपा है। ___ 'जो सम्यकदर्शी है; जो कर्तव्य-विमूढ़ नहीं है, जो ज्ञान, तप और संयम का दृढ़ श्रद्धालु है, जो मन, वचन, और शरीर को पाप-पथ
पर जाने से रोक रखता है; जो तप के द्वारा पूर्व-कृत, पाप-कर्मों को नष्ट कर देता है; वही भिक्षु है।' ___ 'जो सम्यकदर्शी है'—यह शब्द महावीर को बहुत प्रिय है। यह शब्द है भी बड़ा मूल्यवान - राइट विजन । सम्यक दर्शक - जिसे ठीक-ठीक देखने की कला आ गयी। जिसकी आंखों पर से सारे पर्दे और धारणायें अलग हो गयीं। जिसकी आंखें नग्न और शुद्ध हो गयीं; और जो देखता है तो देखते वक्त अपने आरोपण नहीं करता, उसका नाम है, 'सम्यक दृष्टि ।'
हम जब भी देखते हैं तो हमारा आरोपण हो जाता है। हम जो देखते हैं उसमें हम अपने को मिश्रित कर लेते हैं। हमारा देखना शुद्ध
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