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महावीर-वाणी भाग : 2
को एक रुपये की टिकिट खरीदता रहा। दो साल बाद फिर कार आकर रुकी; कोई दरवाजे पर उतरा-वही लोग । उन्होंने आकर फिर पीठ ठोंकी और कहा, 'इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ, दोबारा तुझे लाटरी का पुरस्कार मिल गया, दस लाख रुपये का!' नसरुद्दीन ने माथा पीट लिया। उसने कहा, 'माई गाड हेव आई टु गो दैट हैल-थ्रो दैट, आल दैट हैल अगेन; क्या उस नरक से फिर मुझे गुजरना पड़ेगा?' ...गुजरना पड़ा होगा, क्योंकि दस लाख हाथ में आ जायें तो करोगे भी क्या? लेकिन उसे अनुभव है कि वह एक वर्ष नरक हो गया। धन स्वर्ग तो नहीं लाता, नरक के सब द्वार खुले छोड़ देता है । और जिनमें जरा भी उत्सुकता है, वे नरक के द्वार में प्रविष्ट हो जाते हैं। एषणा का अर्थ है : लस्ट फार लाइफ, जीवन की एषणा। और जीवन की एषणा वासना बन जाती है।
महावीर कहते हैं कि जिन्हें परम जीवन जानना है, उन्हें अपनी ऊर्जा को खींच लेना होगा व्यर्थ की वासनाओं से। मिनिमम, जो न्यूनतम जीवन के लिए जरूरी है-उतना ही। उतना ही, जितने जीवन से साधना हो सके उतना ही, जितना जीवन ध्यान बन सके । उतना ही, जितने से जीवन की ऊर्जा प्रवाहित रह सके और मोक्ष की तरफ बह सके। __ महावीर यह नहीं कहते कि जीवन की धारा को तोड़ देना, लेकिन शुद्धतम कर लेना। अत्यंत अनिवार्य पर ले आना ही त्याग है। एषणा का अर्थ हआ-उतना ही मांगना, उतना ही लेना, उतना ही साथ रखना जिससे रत्तीभर ज्यादा जरूरी न हो । संग्रह मत करना। ___ जीसस ने कहा है, अपने शिष्यों से-देखो पक्षियों की तरफ, वे कोई संग्रह नहीं करते; देखो लिली के फूलों की तरफ, उन्हें कल
की कोई चिंता नहीं है। जिस दिन तम भी पक्षियों की तरह संग्रह नहीं करोगे और फलों की तरह कल की चिंता से मक्त दिन तुम्हारे और परमात्मा के राज्य में कोई भी फासला नहीं होगा।
कल की चिंता वासनाग्रस्त व्यक्ति को करनी ही पड़ेगी, क्योंकि वासना के लिए भविष्य चाहिए । ध्यान करना हो तो अभी हो सकता है, भोग करना हो तो कल ही हो सकता है। भोग के लिए विस्तार चाहिए; समय चाहिये; तैयारी चाहिए; साधन चाहिए। किसी दूसरे को खोजना पड़ेगा, भोग अकेले नहीं हो सकता। ध्यान अभी हो सकता है।
लेकिन बड़ी अदभुत दुनिया है। लोग कहते हैं-ध्यान कल करेंगे, भोग अभी कर लें। भोग तो भविष्य में ही हो सकता है । जिन्होंने जीवन का परम सत्य जाना है, उनका कहना है कि समय की खोज ही वासना के कारण हुई है; वासना ही समय का फैलाव है। यह जो इतना भविष्य दिखलाई पड़ता है, यह हमारी वासना का फैलाव है; क्योंकि हमें इतने में पूरा होता नहीं दिखाई पड़ता। और कुछ लोग कहते हैं, और ठीक ही कहते हैं...!
बुद्ध ने कहा है कि लोग अगले जन्म में भी इसलिए विश्वास करते हैं, क्योंकि उन्हें पक्का पता है कि वासनाएं इतनी ज्यादा हैं कि इसी जन्म में पूरी नहीं हो पायेंगी। अगला जम्न चाहिए। है या नहीं यह सवाल नहीं है, लेकिन अगला जन्म चाहिए। __ जब कोई दो व्यक्ति प्रेम में पड़ जाते हैं तो अकसर प्रेमी पुनर्जन्म में विश्वास करने लगते हैं। प्रेमी और पुनर्जन्म में विश्वास न करें, यह जरा मुश्किल है! मुसलमान प्रेमी भी, ईसाई प्रेमी भी, पुनर्जन्म में विश्वास करने लगते हैं। क्योंकि उसे लगता है कि प्रेम इतने से जीवन में पूरा कैसे हो सकता है; और जीवन चाहिए।
कुछ मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि पुनर्जन्म का सिद्धांत प्रेमियों ने खोजा होगा; क्योंकि उनके लिए जीवन छोटा मालूम पड़ता है और वासना बड़ी मालूम पड़ती है। इतनी बड़ी वासना के लिए इतना छोटा जीवन तर्कहीन मालूम होता है, संगत नहीं मालूम होता । अगर दुनिया में कोई भी व्यवस्था है, तो जितनी वासना उतना ही जीवन चाहिए। इसलिए अनंत फैलाव है।
महावीर कहते हैं : तुम रुक जाना क्षण पर, कल की भी चिंता आज मत लेना, नहीं तो संसार निर्मित होता है। आज की चिंता आज
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