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महावीर-वाणी भाग : 2
उतारकर आपको अच्छा लगता है। कितनी देर अच्छा लगता है? जितनी देर तक बोझ की याद रहती है। बोझ भूल जाता है, अच्छा लगना भी भूल जाता है। ___ यह जो कामवासना जिसका हम बोझ उतारने के लिए उपयोग करते रहे हैं और हमने इसके अतिरिक्त कोई आनंद नहीं जाना है, छोड़ना मश्किल मालम पडती है। क्योंकि जब बोझ घना होगा. तब हम क्या करेंगे? और आज की सदी में तो और भी मश्किल मालम पडती है, क्योंकि पूरी सदी के वैज्ञानिक यह समझा रहे हैं लोगों को कि छोड़ने का न तो कोई उपाय है कामवासना, न छोड़ने की कोई जरूरत है। न केवल यह समझा रहे हैं, बल्कि यह भी समझा रहे हैं कि जो छोड़ता है वह नासमझ है, रुग्ण हो जायेगा; जो नहीं छोड़ता, वह स्वस्थ है। __ शायद आप आधुनिक साहित्य से जरा भी परिचित नहीं होंगे। क्योंकि भारत करीब-करीब दो-तीन सौ साल पीछे की हालतों में मन से भी जीता है। लेकिन अभी सौ वर्षों में पश्चिम में ऐसा साहित्य निर्मित हुआ है जिसका वैज्ञानिक समर्थन है । जो कहता है कि नियमित कामवासना में जाना आदमी के स्वस्थ होने के लिए जरूरी है। जो आदमी नहीं जायेगा नियमित कामवासना में, वह अस्वस्थ हो जायेगा। __ वैज्ञानिकों की खोजें समझा रही हैं आदमी को कि कामवासना मनुष्य का चरम अर्थ है; उसके आगे न कोई अर्थ है, न कोई प्रयोजन है, न कोई आनंद है। धर्म की बातचीत सब बकवास है। आदमी एक पशु है और पशु से ज्यादा होने की कामना ही सिर्फ भ्रम है, एक सपना है।
और बडे बेहदे प्रयोग भी विज्ञान के नाम पर चल रहे हैं। अमरीका में सेक्स लैब बनाये गये हैं, जहां मनष्य की कामवासना का वैज्ञानिक अध्ययन हो रहा है; जो कि बड़ा अजीब और बड़ा अमानवीय है; जिसको हम सोच भी नहीं सकते। एक प्रयोगशाला में सात सौ स्त्री-पुरुषों ने वैज्ञानिकों के सामने, कैमरों के प्रकाश के सामने...फिल्में ली जा रही हैं, चित्र उतारे जा रहे हैं, थर्मामीटर जांच कर रहे . हैं, पुरुष की इंद्रिय में क्या घटनाएं घट रही हैं, उनका रिकार्ड लिया जा रहा है, स्त्री की योनि में भीतर क्या शारीरिक घटनाएं घट रही हैं, उनका रिकार्ड लिया जा रहा है। पच्चीसों यंत्र लगे हुए हैं, पच्चीसों लोग खड़े हुए हैं। ___ सात सौ लोगों ने इस समूह के सामने संभोग करके दिखाया ताकि अध्ययन किया जा सके । अध्ययन हुआ भी और कीमती नतीजे भी हाथ आये। लेकिन मेरा मानना है कि जो दो व्यक्ति पचास लोगों के सामने मंच पर संभोग कर सकते हैं इतने यांत्रिक और आयोजन के बीच उनका संभोग यांत्रिक होगा, उसमें से मनुष्य तो विदा हो गया। वह सिर्फ दो शरीरों का संभोग होगा, और वह भी एकदम यांत्रिक।
और वे मनुष्य भी ऐसे होने चाहिए, जिनकी चेतना करीब-करीब मर चुकी है। अन्यथा, सहज ही आदमी प्रेम में प्राइवेसी खोजता है; एकांत खोजता है; क्योंकि प्रेम इतनी एकांत की घटना है, दो व्यक्तियों के बीच का इतना निजी संबंध है कि कोई तीसरा उसे न देखे। लेकिन जब आदमी रुग्ण हो जाता है, तो वह चाहता है कि कोई तीसरा देखे।
ये जो सात सौ लोग जो स्वेच्छा से वालनटिअर किये और जिन्होंने संभोग करके दिखाया प्रयोगशाला में, ये जरूर रुग्ण रहे होंगे। और ये ही रुग्ण रहे हों ऐसा नहीं, जो लोग चित्र लेने को खड़े हैं, जांचने को खड़े हैं, उनके मन का भी ठीक से परिक्षण किया जाये तो ये भी रुग्ण हैं अन्यथा दूसरे को कामसंभोग में देखने की वासना, देखने की इच्छा, देखने के लिए बहाना खोजना स्वस्थ मन का लक्षण नहीं हो सकता।
और जो परिणाम आये, वे स्वाभाविक रूप से भौतिक हैं । तो यंत्र की तरह सारी बात तय कर दी गयी कि क्या-क्या घटना घटती है शरीर में । आत्मा का कोई संबंध नहीं है । कामवासना का कोई संबंध मनुष्य से नहीं है, दो शरीरों के बीच शक्तियों का आदान-प्रदान है,
और वह भी राहत के लिए है। और यह राहत वैज्ञानिक समझा रहे हैं कि बिलकुल जरूरी है। और जो व्यक्ति इस राहत से अपने को रोकेगा, वह रुग्ण हो जायेगा।
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