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महावीर-वाणी भाग : 2
मीनिंगलेसनेस, एक अर्थहीनता छा गयी है। क्योंकि प्रेम है अर्थ जीवन का।
महावीर कहते हैं, मैं उसे ब्राह्मण कहता हूं, जो प्रेम कर सकता है और आसक्ति में नहीं बंधता । यह हो सकता है । यह तब हो सकता है जब हमारा प्रेम दूसरे व्यक्ति पर निर्भर न हो, बल्कि हमारी क्षमता हो।
इस फर्क को ठीक से समझ लें।
आप इसलिए प्रेम करते हैं कि दूसरा व्यक्ति प्यारा है, तो दूसरे पर निर्भर हैं। महावीर कहते हैं, इसलिए प्रेम कि आप प्रेमपूर्ण हैं। जोर इस बात पर है कि आपका हृदय प्रेमपूर्ण हो । जैसे दीया जल रहा है तो दीये की रोशनी पड़ रही है; फिर कोई भी पास से निकले दीये की उस पर रोशनी पड़ेगी। दीया यह नहीं कहेगा कि तुम सुंदर हो, इसलिए तुम पर रोशनी डाल रहा हूं; कि तुम कुरूप हो इसलिए अपने को बुझा लेता हूं और अंधकार कर देता हूं। दीये की रोशनी बहती रहेगी; कोई न भी निकले तो शून्य में दीये की रोशनी बहती रहेगी। ___ महावीर उसे ब्राह्मण कहते हैं, जिसका प्रेम उसकी हार्दिक ज्योति बन गया। जो इसलिए प्रेम नहीं करता कि आप प्यारे हैं; कि आप सुंदर हैं; कि भले हैं; कि मुझे अच्छे लगते हैं, कि मुझे पसंद हैं। नहीं, जो सिर्फ इसलिए प्रेम करता है कि प्रेमपूर्ण है; कुछ और करने का उपाय नहीं। आप उसके पास होंगे तो उसके प्रेम की किरणें आप पर पड़ती रहेंगी।
प्रेम संबंध नहीं. स्थिति है। और जब ऐसे प्रेम का जन्म हो जाता है-यह तभी होगा जब व्यक्ति दसरों से अपने को हटाये. अपनी दृष्टि को 'पर' से हटाये और 'स्वयं' में गड़ाये, जिसे हम ध्यान कहते हैं। जैसे-जैसे ध्यान बढ़ता है, वैसे-वैसे प्रेम संबंध से हटकर स्थिति बनने लगता है। वह मनुष्य का स्वभाव हो जाता है। ___ महावीर भी प्रेम देते हैं, करते नहीं । करने में तो कृत्य है । महावीर प्रेम देते हैं। उनके होने का ढंग प्रेमपूर्ण है। आप उनके पास जायें तो प्रेम मिलेगा। और आपको ऐसा भी वहम हो सकता है कि उन्होंने आपको प्रेम किया; क्योंकि आप करने की भाषा समझते हैं, होने की भाषा नहीं समझते। महावीर प्रेमपूर्ण हैं। जैसे फूल में गंध है, ऐसे उनमें प्रेम है। 'जो आनेवाले स्नेहीजनों में आसक्ति नहीं रखता, जो उनसे दूर जाता हुआ शोक नहीं करता।'
और ध्यान रखें, शोक तभी होगा जब आसक्ति होगी। जिससे हम बंधे हैं, जिसके बिना हमें होने में अड़चन है, अगर वह न हो तो हमें बहुत कठिनाई हो जायेगी। ___ जब कोई मरता है तो आप इसलिए नहीं रोते कि कोई मर गया । आप इसलिए रोते हैं कि आपके भीतर जो निर्भरता थी, वह टूट गयी। जब कोई मरता है तो आप अपने लिए रोते हैं । कुछ खण्ड आपका टूट गया जो उस आदमी से भरा था। कुछ हृदय का कोना उसने भरा था, रोशन कर रखा था, वह दीया बुझ गया। आपके भीतर अंधेरा हो गया।
कोई किसी के मरने पर इसलिए नहीं रोता कि कोई मर गया । मृत्यु पर हम इसलिए रोते हैं कि हमारे भीतर कुछ मर गया। और तभी तक रोयेंगे आप, जब तक वह कोना फिर से न भर जाये; जिस दिन वह कोना फिर से भर जायेगा, रोना बंद हो जायेगा।
आदमी अपने लिए ही रोता है। तो जब आप शोक करते हैं किसी से दर हटते या किसी के दर जाने पर, वह खबर देता है कि उसके पास रहने पर आसक्ति पैदा हो गयी थी। __महावीर गुजरते हैं एक गांव से प्रेमपूर्ण हैं, कुछ और होने का उपाय भी नहीं है। गांव पीछे छूट जाता है, तो महावीर की स्मृति अगर उस गांव से अटकी रहे तो महावीर ब्राह्मण नहीं हैं। गांव छूट गया, स्मृति भी छूट गयी। जहां महावीर होंगे, वहीं उनका बोध होगा, वहीं उनका प्रकाश होगा । वे लौट-लौटकर पीछे के गांव के संबंध में नहीं सोचेंगे...कि जिस आदमी ने भोजन दिया था कि जिस आदमी ने आश्रय दिया था; कि जिसने पैर दबा दिये थे; कि जिसने इतना प्रेम दिया था...।
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