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महावीर-वाणी भाग : 2
उस कमल होने की कला का नाम धर्म है।
महावीर के सूत्र को अब हम समझें।
'जो आनेवाले स्नेही-जनों में आसक्ति नहीं रखता, जो उनसे दूर जा हआ शोक नहीं करता, जो आर्य-वचनों में सदा आनंद पाता है, उसे हम ‘ब्राह्मण' कहते हैं।'
एक-एक कदम समझना जरूरी है।
'जो स्नेहीजनों में आसक्ति नहीं रखता।' इसका यह अर्थ नहीं है कि वह स्नेह नहीं रखता, नहीं तो स्नेहीजन कहने का कोई कारण नहीं है। प्रेम भरपूर है; आसक्ति नहीं है । शूद्र-मन में प्रेम बिलकुल नहीं होता, आसक्ति ही आसक्ति होती है। ब्राह्मण-मन में आसक्ति खो जाती है और प्रेम ही रह जाता है। __ आसक्ति कीचड़ है; प्रेम कमल है। लेकिन प्रेम को आसक्ति से मुक्त करना बड़ी दुर्गम बात है, क्योंकि हम तो जैसे ही किसी को प्रेम करते हैं. प्रेम कर ही नहीं पाते कि आसक्ति पकड़ लेती है। आसक्ति का मतलब है या तो हम गुलाम हो जाते हैं, या दूसरे को गुलाम बनाने लगते हैं। दोनों ही गुलामी की प्रक्रियाएं हैं। __ किसी व्यक्ति को आप प्रेम करते हैं, प्रेम करते ही आप निर्भर हो जाते हैं उस पर। आपका सुख उस पर निर्भर हो जाता है। आपका दुख उस पर निर्भर हो जाता है। दूसरा आदमी मालिक हो गया। अगर वह चाहे तो दुखी कर सकता है; अगर चाहे तो सुखी कर सकता है। उसका एक इशारा आपको नचा सकता है। उसका एक इशारा आपको दुख में डाल सकता है। आपकी आत्मा की अपनी मालकियत दूसरे व्यक्ति के हाथ में चली गयी।
और ध्यान रहे, जब भी हम अपने प्रेम में किसी को अपना मालिक बना लेते हैं, तो उससे हमारी घृणा भी शुरू हो जाती है, क्योंकि मालकियत कोई किसी की कभी पसंद नहीं करता । इसलिए जिसे हम प्रेम करते हैं, उसे ही घृणा भी करते हैं; और जिसे हम प्रेम करते हैं, उसे ही हम नष्ट भी करना चाहते हैं। क्योंकि वह दुश्मन भी मालूम पड़ता है। __ पड़ेगा ही ! प्रेमी दुश्मन मालूम पड़ते हैं एक दूसरे को, क्योंकि एक दूसरे की स्वतंत्रता को छीन लेते हैं और एक दूसरे को वस्तुएं बना देते हैं, व्यक्तियों से मिटाकर।। ___ हर पति की कोशिश है कि उसकी पत्नी एक वस्तु बन जाये । वह जैसा कहे वैसा उठे-बैठे। वह जैसा इशारा करे वैसा चले । पत्नी की भी पूरी चेष्टा यही है कि पति उसका गुलाम हो जाए। वह कहे रात, तो रात । वह कहे दिन, तो दिन । दोनों इसी संघर्ष में लगे हैं। एक दूसरे को डामिनेट करना है । एक दूसरे को मिटा डालना है। ___ क्यों? दूसरे से इतना भय क्या है ? और जिससे हमारा प्रेम है, उससे इतना भय क्या है ? भय इस बात का है कि हमारा प्रेम तत्काल
आसक्ति बन जाता है; अटैचमेन्ट बन जाता है । और जैसे ही आसक्ति बनता है, तो दो में से कोई एक मालिक बन जाता है। तो मैं मालिक बना रहूं; दूसरा मालिक न बन जाये। लेकिन दूसरा भी इसी कोशिश में लगा है।
क्या प्रेम आसक्ति से मुक्त हो सकता है ? अगर प्रेम आसक्ति से मुक्त हो सके, तो प्रेम घृणा से भी मुक्त हो जाता है। महावीर कहते हैं, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं, जो स्नेहीजनों में आसक्ति नहीं रखता। जिसका स्नेह भरपूर है। जिसके प्रेम देने में कोई कमी नहीं। लेकिन जो अपने प्रेम के कारण न तो किसी का गुलाम बनता है, और न किसी को गुलाम बनाता है । जिसका प्रेम दो स्वतंत्र व्यक्तियों के बीच एक आनंद का संबंध है। जिसका प्रेम दो परतंत्र व्यक्तियों के बीच एक दुख का संबंध नहीं है।
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