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महावीर वाणी भाग 2
कीचड़ का। लेकिन सारी दुनिया में इस कीचड़ के सत्य ने लोगों को बड़ा आश्वासन दिया। लोगों ने कहा, तब ठीक है, तब हम ठीक हैं, जैसे हैं फिर कुछ बुराई नहीं है। फिर अगर मैं चौबीस घंटे कामवासना के संबंध में ही सोचता हूं, और नग्न स्त्रियां मेरे सपनों में तैरती हैं, तो जो कर रहा हूं वह नैसर्गिक है। अगर मैं शरीर में ही जीता हूं तो यह जीना ही तो वास्तविक है, फ्रायड कह रहा है।
फ्रायड ने हमारे निम्नतम को परिपुष्ट किया, इसलिए फ्रायड के वचन थोड़े ही दिनों में सारे जगत में फैल गये। जितनी तीव्रता से साइको एनालिसिस का, फ्रायड का आंदोलन फैला, दुनिया में कोई आंदोलन नहीं फैला। महावीर को पचीस सौ साल हो गये । उपनिषदों को लिखे और पुराना समय हुआ । गीता कहे और भी समय व्यतीत हो गया, पांच हजार साल हो गये। पांच हजार सालों में भी उन्होंने कहा है, वह इतनी आग की तरह नहीं फैला, जो फ्रायड ने पिछले पचास सालों में सारी दुनिया को पकड़ लिया - साहित्य, फिल्म, गीत, चित्र सब फ्रायडियन हो गये हैं। हर चीज फ्रायड के दृष्टिकोण से सोची और समझी जाने लगी। क्या कारण होगा?
अनार्य-वचन हमारे निम्नतम को पुष्ट करते हैं। जब भी कोई हमारे निम्नतम को पुष्ट करता है, तो हमें राहत मिलती है। हमें लगता है। कि ठीक है, हममें कोई गड़बड़ नहीं है। अपराध का भाव छूट जाता है। बेचैनी छूट जाती है कि कुछ होना है, कि कहीं जाना है, कि कोई है। सीधी जमीन पर चलने की स्वीकृति आ जाती है कि ठीक है, आदमी सभी ऐसे हैं ।
शिखर छूना
इसलिए हम सब दूसरों के संबंध में बुराई सुनकर प्रसन्न होते । कोई निंदा करता है किसी की, हम प्रसन्न होते हैं; क्योंकि उस निंदा से हमारे भीतर एक राहत मिलती है कि ठीक है। अगर कोई किसी महात्मा की निंदा करे तो हमें प्रसन्नता और भी ज्यादा होती है; क्योंकि यह पक्का हो जाता है कि महात्मा- वहात्मा कोई हो नहीं सकता, सब ऊपरी बातचीत हैं। हैं तो सब मेरे ही जैसे; किसी का पता चल गया है और किसी का पता नहीं चला I
पुष्ट कर
तो जब भी आपको किसी की निंदा में रस आता है, तब आप समझना कि आप क्या कर रहे हैं। आप अपने निम्नतम को रहे हैं। आप यह कह हैं कि अब कोई चुनौती नहीं, कोई चैलेंज नहीं; कहीं जाना नहीं, कुछ होना नहीं। जो मैं हूं - इसी कीचड़ में मुझे जीना है और मर जाना है। यही कीचड़ जीवन है।
अनार्य-वचन बड़ा सुख देते हैं। बहुत अनार्य-वचन प्रचलित हैं। हम सबको पता है कि अनार्य-वचन तीव्रता से फैलते जा रहे हैं; और धीरे-धीरे हम यह भी भूल गये हैं कि वे अनार्य हैं। सब चीजों को जो लोएस्ट डिनामिनेटर है, जो निम्नतम तत्व है, उससे समझाने की कोशिश चल रही है। आदमी को रिड्यूस करके आखिरी चीज पर खड़ा कर देना है। जैसे हम आदमी को काटें-पीटें तो क्या पायेंगे? हड्डी, मांस, मज्जा–तो हम कहेंगे कि मनुष्य हड्डी, मांस, मज्जा का एक जोड़ है। बात खतम हो गयी, चेतना वहां नहीं मिलेगी ।
जो श्रेष्ठतम है, वह हमारे उपकरणों से छूट जाता है। अगर आदमी के व्यवहार की हम जांच-पड़ताल करें, तो क्या मिलेगा ? कामवासना मिलेगी, वासना मिलेगी, दौड़ मिलेगी महत्वाकांक्षा की। फिर हर श्रेष्ठ चीज को हम निकृष्ट से समझा लेंगे, ऐसे ही जैसे हम कहेंगे, कमल में क्या रखा है, कीचड़ ही तो है ।
यह एक ढंग हुआ । इससे हम कीचड़ को राजी कर लेंगे कि कमल होने की मेहनत में मत लग। कमल में भी क्या रखा है, बस कीचड़ ही है। तो कीचड़ की कमल होने की जो आकांक्षा पैदा हो सकती थी, वह कुंद हो जायेगी। कीचड़ शिथिल होकर बैठ जायेगी अपनी दौड़-धूप करना, क्यों परेशान होना ।
अनार्य-वचन सुख देते हैं। आर्य-वचन दुख देते हैं। महावीर कहते हैं, जो आर्य-वचन में आनंद ले सके, वह ब्राह्मण है। भला ह अभी आर्य हो न गया हो, लेकिन आर्य-वचनों में आनंद लेने का अर्थ यह है कि चुनौती स्वीकार कर रहा है। जीवन के शिखर तक पहुंचने की आकांक्षा को जगने दे रहा है। जो है क्षुद्र उससे राजी नहीं है, जब तक विराट न हो जाये ।
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