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कौन है पूज्य ? महावीर कहते हैं कि अगर जीना है, तो बस एक ही जीने योग्य बात है कि जितने से संयम सध जाये, जितनी शक्ति की जरूरत है शरीर को, ताकि साधना हो सके। इस भाव से निर्वाह, बस, इतना ।
'... अपरिचित घरों से... ।'
महावीर की शर्तें बड़ी अनूठी हैं। महावीर कहते हैं कि उनका भिक्षु, उनका साधु परिचित घरों में भीख मांगने न जाए, क्योंकि जहां परिचय है वहां मोह बन जाता है; जहां मोह बन जाता है वहां देनेवाला ऐसी चीजें देने लगता है, जो वह चाहता है कि दी जाएं।
अगर भिक्षु रोज आपके घर आता - आपका मोह बन जाये, तो आप मिठाइयां देने लगेंगे, अच्छा भोजन बनाने लगेंगे । और, महावीर कहते हैं कि वह जो गृहस्थ है, जिसके घर आप परिचित भाव से भीख मांगने लगेंगे, आपके लिए तैयारी में जुट जायेगा। उसके लिये चिंता पैदा होगी। वह विचार करेगा। वह कल रात से ही सोचेगा कि कल मुनिजी आते हैं, तो उनके लिए क्या तैयार करना है? तो उसकी चिंता, विचार का आप कारण बनते हैं और यह चिंता, विचार कर्म हैं, और ये बांधते हैं। इसलिए अपरिचित घर में भिक्षा मांगना । अचानक पहुंच जाना, ताकि उसे कोई तैयारी न करनी पड़े।
और महावीर कहते हैं, आपके लिए विशेष रूप से तैयारी करनी पड़े तो उससे भी अहंकार निर्मित होता है, विशिष्टता । अपरिचित घर के सामने खड़े हो जाना, जिसको पता ही नहीं था कि आप भिक्षा मांगेंगे वहां। फिर वह जो दे दे, और वह वही देगा जो वह रोज खाता है। जो उसने अपने लिए तैयारी किया था, वही देगा। विशिष्ट आपके लिए कोई चिंता नहीं करनी पड़ेगी ।
लेकिन अपरिचित घर के सामने हो सकता है, वह दे या न दे। इसलिए तो हम परिचित घर खोजना पसंद करेंगे। अपरिचित घर के सामने वह दे या न दे, इसलिए महावीर कहते हैं : दे तो प्रसन्न मत होना, न दे तो खिन्न मत होना। क्योंकि अपरिचित का मतलब ही यह है कि सब अनिश्चित है, कि देगा कि नहीं देगा ।
और ध्यान रहे, जितना अपरिचित घर होगा उतनी ही खिन्नता असंभव होगी क्योंकि अपेक्षा नहीं होगी। आप मुझे जानते हैं, और मैं आपके द्वार पर भिक्षा मांगने आ जाऊं और आप न दें, तो खिन्नता पैदा होने की संभावना ज्यादा है। क्योंकि जिस आदमी को जानते थे, जिस पर भरोसा किया था, उसने दो रोटी देने से इनकार कर दिया। अपरिचित आदमी कह दे कि नहीं है, तो खिन्नता की संभावना कम है।
ध्यान रहे, खिन्नता की मात्रा उतनी ही होती है जितनी ऐक्सपेक्टेशन, अपेक्षा की मात्रा होती है। लेकिन एक बड़े मजे की बात है; इसे थोड़ा समझ लेना जरूरी है। अगर आप परिचित आदमी के घर जाएं और वह आपको भिक्षा न दे... !
महावीर अपने भिक्षुओं से बोल रहे हैं, अपने मुनियों से, साधकों से। इसे आप अपने जीवन में भी समझ लेना, क्योंकि बहुत तरह के संदर्भ गृहस्थ के लिए भी वही हैं।
अगर आप परिचित आदमी के घर जाएं और वह भिक्षा न दे तो बड़ी खिन्नता होगी, एक बात; अगर वह भिक्षा दे तो बहुत प्रसन्न नहीं होगी, क्योंकि देनी ही थी। इसमें कोई खास बात ही न थी। न दे तो दुख होगा, दे तो कोई सुख नहीं होगा । अपरिचित आदमी अगर न दे तो खिन्नता कम होगी; लेकिन अगर दे तो प्रसन्नता बहुत होगी, कि कितना अच्छा आदमी है। जरूरी नहीं था कि देता और दिया ।
तो ध्यान, महावीर कहते हैं, दोनों बातों का रखना जरूरी है - प्रसन्नता न | अपरिचित के घर मांगना, खिन्नता की संभावना कम है। लेकिन संभावना है, अपेक्षा आदमी कर लेता है और खासकर मुनि, साधु, स्वामी बड़ी अपेक्षा कर लेते हैं। वे मान ही लेते हैं कि इतना बड़ा त्यागी, और मुझे दो रोटी देने से इनकार किया। क्या समझ रखा है इन लोगों ने ? मैंने सारा संसार छोड़ दिया; लात मार दी सब चीजों को और मुझे दो रोटी देने से इनकार कर दिया !
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