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छह लेश्याएं : चेतना में उठी लहरें
प्रेम में भी एक गहरा स्वार्थ है कि पत्नी मेरी है, और पत्नी के बिना मेरा जीवन कष्टपूर्ण होगा; पत्नी जरूरी है, आवश्यक है। उस पर ध्यान गया है, उस को मूल्य दिया है, लेकिन मूल्य मेरे लिए ही है ।
कापोत लेश्या अधर्म की पतली से पतली कम-से-कम भारी लेश्या है। लेकिन, अधर्म वहां है। हममें से मुश्किल से कुछ लोग ही इस लेश्या तक उठ पाते हैं कि दूसरा मूल्यवान हो जाये। लेकिन इतना भी जो कर पाते हैं, वह भी काफी बड़ी घटना है । अधर्म के द्वार पर आप आ गये, जहां से दूसरे जगत में प्रवेश हो सकता है। लेकिन आमतौर से हमारे संबंध इतने भी ऊंचे नहीं होते । नील-लेश्या ही होते हैं । और कुछ के तो प्रेम के संबंध भी कृष्ण लेश्या पर होते हैं ।
आपने दि सादे का नाम सुना होगा। फ्रांस का एक बहुत बड़ा लेखक, जिसके नाम का पूरा एक रोग पैदा हो गया – सैडिज्म । दि सादे जब भी किसी स्त्री को प्रेम करता था, तो पहले उसे मारेगा, पीटेगा, कोड़े लगायेगा, नाखून चुभायेगा, कीलें लगायेगा, लहूलुहान कर देगा - तभी उससे संभोग कर सकेगा, उससे प्रेम कर सकेगा। दि सादे का कहना था कि 'जब तक सताओ न, तब तक दूसरा व्यक्ति जगता ही नहीं। तो पहले उसे जगाओ, जब उसको कोड़े मारो, उसका खून तेजी से बहने लगे और उत्तेजित हो जाये और विक्षिप्त हो जाये, तब जो रस है संभोग का, वह साधारणतया चुपचाप संभोग कर लेने में नहीं हो सकता।' यह आदमी कृष्ण लेश्या का आदमी है। इसका प्रेम भी हिंसा से आता है। और जब तक हिंसा तीव्र न हो जाये तब तक इसके प्रेम में उत्तेजना नहीं मालूम होगी। जैसे आप भोजन करते हैं तो मिर्च के बिना स्वाद नहीं आता, ऐसा दि सादे को जब तक मारपीट न कर ले तब तक कोई रस नहीं आता ।
लेकिन दूसरी तरह के लोग भी हैं। एक दूसरा लेखक हुआ, मैसोच, वह उल्टा था। वह जब तक अपने को न पीट ले, खुद को न मार ले, तब तक वह प्रेम में नहीं उतर सकता था। तो प्रेमिका खड़ी देखेगी, वह खुद को मारेगा और प्रेमिका से भी कहेगा कि वह सहायता करे। मारे, पीटे, लहूलुहान कर दे, तब... ।
दो तरह के लोग हैं कृष्ण लेश्या में : मैसोचिस्ट और सैडिस्ट, मैसोचिवादी और सादेवादी । अगर इन दोनों का मिलन हो जाये तो विवाह बड़ा सुखद होता है। एक स्वयं को दुख देनेवाला - स्वपीड़क, और परपीड़क। अगर ये पति-पत्नि हो जाएं तो इनसे अच्छा जोड़ा खोजना मुश्किल है। क्योंकि पति मारे तो पत्नी रस ले, या पत्नी पीटे तो पति रस ले। इसको कहते हैं, राम मिलाई जोड़ी। इनमें बिलकुल तालमेल है। दोनों कृष्ण-लेश्या पर एक-दूसरे के परिपूरक हैं।
कभी-कभी सौभाग्य से ऐसी जोड़ी भी बन जाती है, लेकिन कभी-कभी । अकसर तो ऐसा नहीं हो पाता, क्योंकि हम इस विचार से सोचते नहीं विवाह करते वक्त । हम और सब चीजें सोचते हैं, यह कभी नहीं सोचते कि इन दोनों में एक पीड़ा देनेवाला और एक पीड़ा लेनेवाला होना चाहिए, नहीं तो जिंदगी कैसे चलेगी ।
अगर मनौवैज्ञानिक के हाथ में हमने दिया कि वह तय करे कि कौन-सा जोड़ा ठीक होगा, तो वह इस जोड़े को पहले तय करेगा कि यह जोड़ा बिलकुल ठीक रहेगा। इसमें कभी कलह नहीं होगी। कलह का कोई कारण नहीं है ।
यह जो कृष्ण लेश्या है इसमें प्रेम का भी जन्म हो तो वह भी हिंसा के ही माध्यम से होगा। ऐसे प्रेमियों की अदालतों में कथाएं हैं, जिन्होंने अपनी प्रेयसी को मार डाला सुहागरात में ही ! ... और बड़े प्रेम से विवाह किया था। थोड़ी-बहुत तो आप में भी, सब में यह वृत्ति होती है— दबाने की, नाखून चुभाने की । वात्स्यायन ने अपने काम-सूत्रों में इसको भी प्रेम का हिस्सा कहा है: दांत से काटो । इसको उसने जो प्रेम की जो प्रक्रिया बताई है : कैसे प्रेम करें? उसने दांत से काटना भी कहा है। नाखून चुभाओ, शरीर पर निशान छूट जायें—इनको लव मार्क्स, प्रेम के चिह्न कहा है... ।
वात्स्यायन अनुभवी आदमी था, बड़ी गहरी उसकी दृष्टि रही होगी; क्योंकि वह जानता है कि कृष्ण लेश्यावाले लोग हैं, ये जब तक
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