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महावीर-वाणी भाग : 2
की भाषा में सूक्ष्म इंद्रियों का सक्रिय हो जाना है। ___ आप एक स्त्री से बिलकुल मोहित हो जाते हैं। जब आप मोहित हो जाते हैं तो सारी दुनिया आपको पागल कहेगी। लोग कहेंगे कि, क्या देखते हो उस स्त्री में ? पर उस आदमी को कुछ दिखाई पड़ रहा है, जो किसी को दिखाई नहीं पड़ रहा । उसको क्या दिखाई पड़ रहा है? उसकी कोई सक्षम इंद्रिय उस स्त्री के सम्पर्क में सक्रिय हो जाती है। उस संघात में कोई सक्ष्म इंद्रिय सक्रि उस स्त्री को, जो वह ऊपर से दिखाई पड़ती है, वैसा नहीं देख रहा है, बल्कि वह जैसी भीतर से है, वैसा आपको प्रतीत होने लगा है।
प्रेम की घटना अवधि ज्ञान की घटना है। महावीर कहते हैं, ये तीन ज्ञान सामान्य हैं । सारे चमत्कार तीसरे ज्ञान में आ जाते हैं। आप बीमार हैं और एक महात्मा के पास जाते हैं चमत्कारी ! और वह कहता है, 'जाओ, तीन दिन में ठीक हो जाओगे।' आप सोचते हैं कि उसने तीन दिन में ठीक हो जाओगे कहा, इसलिए मैं तीन दिन में ठीक हो रहा हूं। बात बिलकुल दूसरी है । उसकी सूक्ष्म इंद्रियां सक्रिय हैं, और वह देखता है कि तीन दिन बाद तुम ठीक होनेवाले हो, इसलिए वह कहता है, तीन दिन में ठीक हो जाओगे । और जब तुम तीन दिन में ठीक हो जाते हो, तो तुम सोचते हो कि चमत्कार हो गया, उस महात्मा ने ठीक कर दिया। उस महात्मा को सिर्फ इतना बोध हुआ कि तीन दिन में तुम ठीक हो जाओगे। यह बोध आज नहीं कल, वैज्ञानिक यंत्रों से भी हो सकेगा।
रूस में ऐसे कैमरे विकसित किये जा रहे हैं. जो बीमारी कितने दिन में समाप्त हो जायेगी. इसका चित्र ले सकें। हैं । बीमारी है, इसका पता चल सके; और बीमारी कितनी देर में ठीक हो जायेगी, इसका पता चल सके; और बीमारी कितने दिन बाद शुरू होनेवाली है, इसका पहले से पता चल सके-इन तीनों दिशाओं पर रूस में काफी काम हो रहा है। और सफलतापूर्वक काम हो रहा है। कोई भी बीमारी आपके जीवन में आये, उसके छह महीने पहले उसके फोटोग्राफ लिए जा सकते हैं। और अगर छह महीने पहले बीमारी का चित्र लिया जा सके, तो आने के पहले ही आपका इलाज किया जा सकता है।
जो-जो मन भीतर से कर सकता है, वह-वह विज्ञान यंत्र के सहारे से बाहर से कर सकता है।
चौथे ज्ञान को महावीर कहते हैं, 'मन-पर्याय' । यहां से साधक, योगी की यात्रा शुरू होती है। 'मन-पर्याय' का अर्थ है : स्वयं के मन के भीतर जो पर्याय हैं, जो रूप हैं, उनका साक्षी-दर्शन । और जब कोई व्यक्ति अपने मन की पर्यायों का साक्षी-दर्शन करने में समर्थ हो जाता है, तो वह दूसरों के मन-पोयों का भी साक्षी-दर्शन करने में समर्थ हो जाता है । जब कोई व्यक्ति अपने मन की पूरी पर्तों को देखने में समर्थ हो जाता है, तो उसको अपने पूरे पिछले जन्म दिखाई पड़ने शुरू हो जाते हैं, क्योंकि वे सब मन की पर्तों में मौजूद हैं। कोई भी स्मृति खोती नहीं, सब संग्रहीत होती चली जाती है। उन सबको फिर से खोला जा सकता है, देखा जा सकता है। 'मन की पर्यायों का जिसको अनुभव होने लगे... आपने गाली दी, तो मन-पर्यायवाला व्यक्ति आपकी गाली की फिक्र नहीं करेगा, न आपकी फिक्र करेगा, वह भीतर देखेगा कि आपकी गाली से मेरे मन में कैसे रूप, कैसे फार्मस् पैदा होते हैं ? मेरे भीतर क्या होता है? क्योंकि असली सवाल मैं हं, असली सवाल आप नहीं हैं। आपसे क्या लेना-देना है? आपने गाली दी, मैंने आंख बंद की और देखा कि मेरे भीतर क्या होता है ?
इस साक्षी-दर्शन से धीरे-धीरे बाहर से दृष्टि भीतर की तरफ मुड़ती है; हम मन के पीछे सरकते हैं। और जो व्यक्ति मन के पीछे सरकता है, उसे आत्मा का अनुभव शुरू होता है। तो 'मन-पर्याय' की अवस्था में आत्मा की पहली झलक मिलनी शुरू होती है। 'मैं कौन हैं?
और तब मन ऐसा ही लगता है, जैसे आकाश में घिरे बादल हों, और मैं सूर्य हं , जो छिप गया है। इन बादलों के साथ हमारा इतना तादात्म्य है कि हम भूल ही जाते हैं कि हम इनसे अलग हैं। हम इनके साथ एक हो जाते हैं।
जब आप क्रोध से भरते हैं तो आपका क्रोध अलग नहीं रहता, आप क्रोध के साथ बिलकुल एक हो जाते हैं; आप क्रोधी हो जाते
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