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महावीर-वाणी भाग : 2
हो सकती है, एक आम और एक इमली में तुलना नहीं हो सकती। __ महावीर कहते हैं, प्रत्येक व्यक्ति अद्वितीय परमात्मा है-यूनीक, बेजोड़। उसकी कोई तुलना नहीं है। इसलिये महावीर ने जब वर्ण का विरोध किया तो वह कोई सामाजिक क्रांति नहीं थी, वह आध्यात्मिक विचारणा थी। गांधी भी विरोध करते थे वर्ण का, केशवचंद्र सेन भी विरोध करते थे, राममोहन राय भी विरोध करते थे, लेकिन उनका विरोध सामाजिक धारणा थी। महावीर का विरोध बहुत
आंतरिक और गहरा है । वे यह कह रहे हैं कि हर मनुष्य अद्वितीय है, कि तुलना का कोई उपाय नहीं है। और जब आप अपने को तौलते हैं, तो नाहक ही अपने को कर्म के जाल में डालते हैं। न तो अपने को ऊंचा, न तो अपने को नीचा-दूसरे से तौलें ही मत, तो गौत्र का कर्म नष्ट होता है।
और अंतिम आठवां है, 'अंतराय' । अंतराय बड़ा काम कर रहा है आपके जीवन में।। एक मित्र मेरे पास आये, कहने लगे कि 'आप इम्पाला में क्यों चलते हैं?' मैंने कहा, 'किसी भक्त ने अभी तक राल्स रायस दी ही नहीं, और तो कोई कारण नहीं है इम्पाला में चलने का।' उन्होंने कहा कि 'नहीं, और तो आपकी बात सब मुझे समझ में आती है, बस ये इम्पाला में चलना...!
अब यह 'अंतराय हो गया। इम्पाला में आपको चलने को कह नहीं रहा, इम्पाला आपको मिल जाये तो मत चलना! मेरे इम्पाला में चलने से उनको...!
मेरी सब बात ठीक लगती है, लेकिन इम्पाला की वजह से सब गड़बड़ हआ जा रहा है। इम्पाला अंतराय बन रही है। अंतराय का मतलब बीच में व्यवधान बन रही है, और ऐसा नहीं कि इम्पाला ही बनती रही है, अजीब-अजीब चीजें बन जाती हैं।
मैं जबलपुर था, तो एक वकील हाईकोर्ट के, बड़े वकील, एक दिन मुझसे मिलने आये, और आकर उन्होंने कहा कि 'और सब तो ठीक है, आपकी बात सब समझ में आती है, लेकिन आप इतनी लम्बी बांह का कर्ता क्यों पहनते हैं?'
...मेरा कुर्ता आपको? मेरी बांह है ! __ तो उन्होंने कहा कि इससे मुझे बड़ी अड़चन होती है। आपको मैं सुनने भी आता हूं, तो मेरा ध्यान आपके कुर्ते पर ही लगा रहता है कि आप इतना लम्बा कुर्ता क्यों पहनते हैं? कई दफा तो मैं आपका सुनना ही चूक जाता है।' __अंतराय का अर्थ होता है : कोई व्यर्थ की चीज जो सार्थक में बाधा बन जाये। और आप सब इस तरह ही जीते हैं। जीवन को जिन्हें खोजना है, उन्हें अंतराय तोड़ने चाहिये। उन्हें जो ठीक लगे, उतना चुन लेना चाहिये; जो गलत लगे, उसकी बात ही क्या उठानी? उससे आपका लेना-देना क्या है ? उससे आपको प्रयोजन क्या है?
एक मित्र मेरे पास आये। किसी सदगुरु के पास हैं। और निश्चित ही. जिस गरु के पास हैं. वह कीमती आदमी हैं। वे कहने लगे. 'बस एक बात सब खराब कर देती है। वे कभी-कभी गाली दे देते हैं। ज्ञानी को गाली तो नहीं देना चाहिये?'
मैंने कहा कि 'तुम्हें क्या पता कि ज्ञानी को गाली देनी चाहिये कि नहीं? सब ज्ञानियों का हिसाब लगाओ, फिर पता लगाओ कि कितने ज्ञानियों ने दी है गाली, कितनों ने नहीं दी। रामकृष्ण देते थे। किताब में नहीं लिखा है, क्योंकि किताब में लिखना मुश्किल मालूम पड़ता है।...ठीक-से गाली देते थे, अच्छी तरह देते थे...! लेकिन किताब में यह बात नहीं लिखी है, क्योंकि किताब में
कहने लगे, 'रामकृष्ण गाली देते थे? हद हो गई ! मैं तो उनकी किताबें अब तक पढ़ता रहा !' ...अंतराय खड़ा हो गया। अब वह देते थे कि नहीं देते थे, यह भी सवाल नहीं है ! अभी तक किताब बड़े मजे से पढ़ रहे थे ! उनकी गाली से तुम्हें क्या लेना-देना? रामकृष्ण गाली देकर नरक जायेंगे तो वह जायेंगे । इम्पाला में बैठकर कोई नरक जायेगा तो वह
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