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पांच ज्ञान और आठ कर्म
आदमी दुख को खोज रहा है। नहीं मिलता, तो भी तकलीफ होती है। अगर दिनभर कोई न मिले जो आपको क्रोध दिलाए, तो भी ऐसा लगता है कि कुछ खाली-खाली गया। कोई न मिले, जो आपको दुख दे, तो भी ऐसा लगता है कि आज कुछ हुआ नहीं। सब बेरौनक मालूम पड़ता है। आदमी सुख भी झेल नहीं सकता, उसमें भी दुख बना लेगा !
आपके जीवन में जो घटता है, वह आपकी ग्राहकता है। महावीर का जोर इस बात पर है कि आपके पास वेदनीय कर्म हैं। आपने जन्मों-जन्मों में दुख पाया है, इकट्ठा किया है, उसके कारण आप दुखी होते चले जाते हैं । इस सिलसिले को तोड़ें। यह तभी टूटेगा, जब
आप दूसरे को जिम्मा देना बंद कर दें। यह कहना बंद कर दें कि दूसरा मुझे दुख दे रहा है।' यह तभी टूटेगा, जब आप समझेंगे कि मैं दुख चुन रहा हूं। तो जब भी आप दुखी हों, तत्काल निरीक्षण करें कि आपने कैसे चुना, दुख कैसे चुना? और उस चुनाव को बंद करें। धीरे-धीरे चुनाव बंद होता जायेगा, सेतु टूट जायेंगे। और तब आप दूसरी प्रक्रिया भी सीख सकते हैं, कि सुख चुनें। ___ जो आदमी दुख छोड़ने की प्रक्रिया सीख जाता है, वह सुख चुनने लगता है । वह गलत-से-गलत स्थिति में से भी सुख को निचोड़ लेगा। उसी को जीवन की कला आती है, वही जीवन का रस पी पाता है। वही जीवन को भोग पाता है, उसमें से सुख चुन लेता है गलत-से-गलत स्थिति में से भी सुख चुन लेता है। ___ मेरे एक मित्र बीमार पड़े थे-बड़े परेशान । मैंने उनको कहा कि अच्छा ही हुआ कि महीनेभर के लिए फुरसत मिली ! वैसे तो शायद फुरसत कभी मिलती नहीं। परमात्मा की अनुकंपा है कि उसने बीमार किया, कि तुम बिस्तर पर पड़े हो ! अब बिस्तर का आनंद लो ! अब क्यों परेशान हो रहे हो? जा सकते नहीं दुकान पर, उठ सकते नहीं, कुछ कर सकते नहीं। और काफी कर लिया, पचास साल से कर ही रहे हो, कुछ पाया भी नहीं। एक महीना बिस्तर में पड़े रहो शांति से तो क्या हर्ज है? लोग इसी की तो आशा रखते हैं मोक्ष में कि पड़े हैं, कोई काम नहीं, कोई झंझट नहीं ! मोक्ष नहीं चाहिए? महीनाभर के लिए मिला है, कंपलसरी मिला है—लो ! कुछ पढो, कुछ संगीत सुनो, कुछ ध्यान करो । बहुत से काम आपाधापी में नहीं कर पाए हो, छूट गये हैं। फिजूल काम हैं-बच्चों से बात करनी हैं, पत्नी के पास बैठ जाना है। कुछ करो, आनंद लो इतने दिन का-एक महीना मिल गया है अवकाश का !' _वह बोले कि 'नहीं, अभी कहां अवकाश । अभी बड़े काम उलझे हैं।' पर मैं उनको कह रहा हूं कि काम उलझे हैं, तो उलझे हैं, तुम जा सकते नहीं, कोई उपाय है नहीं। मगर वे पड़े हैं अपने बिस्तर पर और दुकान की चिंता खींच रही है, आफिस की चिंता खींच रही है !
अगर आपको कोई अनिवार्य रूप से भी मोक्ष भेज दे, आप वापस आ जायेंगे- 'काम बहुत बाकी हैं, अभी हम जा नहीं सकते !'
चौथे कर्म को महावीर कहते हैं, 'मोहनीय कर्म, जब आप किसी से आकर्षित होते हैं, तो आपकी धारणा होती है कि आकर्षण का विषय आपको आकर्षित कर रहा है। महावीर कहते हैं, नहीं। सारे जीवन की प्रक्रिया आपसे पैदा होती है। आप आकर्षित हो रहे है कोई आकर्षित कर नहीं रहा है। __कहा जाता है कि लैला कुरूप थी, सुंदर नहीं थी, और मजनूं आकर्षित था। कहा जाता है कि गांव में सबसे कुरूप लड़की लैला
थी और मजनूं दीवाने थे। मजनूं की दीवानगी इतनी ज्यादा थी कि अब जब भी कोई दीवाना होता है, तो लोग उसको मजनूं कहते हैं। सम्राट ने बुलाया मजनूं को और कहा कि 'तेरी दीनता, तेरा दुख, तेरा रुदन देखकर दया आती है। पागल, उस लड़की में कुछ भी नहीं है, तू नाहक परेशान हो रहा है। और तुझ पर मुझे इतनी दया आने लगी है कि रात तुझे रोता हुआ निकलता देखता हूं सड़कों से... चिल्लाता-लैला, लैला कि... मैंने गांव की सब सुंदर लड़कियां बुलाई हैं। लड़कियां खड़ी हैं, इनमें से तू चुन ले।' मजनूं ने कहा, 'लैला तो इनमें कहीं भी नहीं है।' सम्राट ने कहा, 'लैला बिलकुल साधारण है।' तो मजनूं ने कहा, 'लेकिन आप कैसे पहचानेंगे? लैला को देखने के लिए मजनूं की आंख चाहिये। वह असाधारण है।'
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