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लोकतत्व-सूत्र
तत्थ पंचविहं नाणं, सुयं आभिनिबोहियं । ओहिनाणं तु तइयं, मणनाणं च केवलं ।।
नाणस्सावरणिज्जं, दंसणावरणं तहा । वेयणिज्जं तहा मोहं, आउकम्मं तहेव च ।। नामकम्मं च गोत्तं च,
अंतरायं तहेव च ।
एवमेयाई कम्माई, अट्ठेव उ समासओ।।
श्रुत, मति, अवधि, मन - पर्याय और कैवल्य ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय,
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इस भांति ज्ञान पांच प्रकार का है। आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय- - इस प्रकार संक्षेप में ये आठ कर्म बतलाये हैं ।
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