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लोकतत्व-सूत्र : 3
नाणेण जाणइ भावे,
दंसणेण य सद्दहे। चरित्तेण निगिण्हाइ,
तवेण परिसुज्झइ।।
नाणं च दंसणं चेव,
चरित्तं च तवो तहा। एयं मग्गमणुप्पत्ता, जीवा गच्छंति सोग्गइं।।
मुमुक्षु-आत्मा ज्ञान से जीवादिक पदार्थों को जानता है, दर्शन से श्रद्धान करता है, चारित्र्य से भोग-वासनाओं का निग्रह करता है, और तप से कर्ममलरहित होकर पूर्णतया शुद्ध हो जाता है। ज्ञान, दर्शन, चारित्र्य और तप-इस चतुष्टय अध्यात्ममार्ग को प्राप्त होकर मुमुक्षु जीव मोक्षरूप सदगति पाते हैं।
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