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मुमुक्षा के चार बीज
हमारी शिक्षा मुमुक्षा के आधार पर खड़ी थी : 'वह सीखो, जिससे जीवन बदलता हो ।' आज की शिक्षा इस आधार पर खड़ी है कि वह सीख लो, जिससे आजीविका चलती हो।' जीवन बदलने का कोई सवाल नहीं है, जीवन चल जाये, इतना भर काफी है। सुविधा मिल जाये, धन मिल जाये, जीवन चल जाये। आजीविका आधार है, जीवन नहीं। ___ पूरी चेष्टा थी हमारी पूरब में कि बच्चा जब पहले दिन गुरुकुल जाये, तो मुमुक्षा के भाव से जाये । वहां से बदलकर लौटने का खयाल हो । वहां से नया आदमी होकर लौटे, वहां से द्विज होकर लौटे। गुरु के पास जा रहा है, वहां से नया होकर लौटे। वहां से कुछ बातें सीखकर आ जाये, यह मूल्यवान नहीं है । मूल्यवान यह है कि वहां से बीईंग, वहां से अस्तित्व का नया अनुभव लेकर आ जाये। वह
अनुभव ही उसके जीवन की आधारशिला बनेगा, उस आधारशिला पर कभी मोक्ष तक भी उठा जा सकता है। ___ मुमुक्षा से ज्ञान, ज्ञान से दर्शन, दर्शन से श्रद्धा का जन्म है । आपसे महावीर नहीं कहते कि आप मान लो कि मोक्ष है। वे आपसे नहीं कहते कि संसार दुख है, यह मान लो । वे कहते हैं, इसे अनुभव करो। और सभी अनुभोक्ताओं का अनुभव एक ही निष्कर्ष पर ले आता है। सभी अनुभव करनेवालों का सार सदा एक होगा। बातचीत करनेवालों का कभी भी कोई तालमेल नहीं हो सकता, यह जरा सोचने-जैसी बात है।
दुनिया में हजारों तरह की फिलासफीज हैं, लेकिन विज्ञान एक तरह का है । आखिर क्या कारण है कि फिलासफीज इतनी हों, और विज्ञान एक हो? कारण सीधा है क्योंकि फिलासफीज अकसर बातचीत है, कहीं कोई अनुभव नहीं है जहां कि दो व्यक्ति मिल सकें। विज्ञान अनुभव है, प्रयोग है—मिलना ही पड़ेगा । तो दुनिया में कहीं भी विज्ञान की खोज हो, सारी दुनिया के वैज्ञानिक, आज नहीं कल, उससे राजी हो जायेंगे-होना ही पड़ेगा। अगर सत्य है, तो राजी होना ही पड़ेगा । और कसौटी अनुभव है । आप इनकार कर नहीं सकते, आप यह नहीं कह सकते कि मैं मुसलमान हूं, मेरे घर में पानी सौ डिग्री पर भाप नहीं बनता; तुम हिंदू हो, तुम्हारे घर में बनता होगा, हमारे दर्शन अलग हैं, मेरे घर में पानी डेढ़ सौ डिग्री पर भाप बनता है।
मुसलमान हो कि हिंदू, कि तिब्बत में हों कि इंग्लैंड में, कोई फर्क नहीं पड़ेगा-पानी तो सौ डिग्री पर ही भाप बनेगा। लेकिन यह प्रयोग है, इससे राजी होना पड़ेगा । इसे चार आदमी कर सकते हैं। और उनके अनुभव में जब एक ही बात आयेगी, तो कोई उपाय नहीं है लेकिन कोई आदमी कहता है कि ईश्वर के चार हाथ हैं और कोई आदमी कहता है, चार नहीं, अनंत हाथ हैं, और कोई कहता है, सिर्फ दो हाथ हैं, और कोई कहता है कि ईश्वर के हाथ हैं ही नहीं, वह निराकार है- तो इसमें कोई उपाय नहीं है । क्योंकि जिसकी बात की जा रही है, उसको अनुभवगत बनाना असंभव है, कल्पनाजन्य है, विचारजन्य है। __ महावीर बहुत ही एम्पिरिकल हैं, व्यावहारिक हैं। वे कहते हैं जो अनुभवगम्य हो सके, वही श्रद्धा बन सकेगी। इसलिए ऊंची आकाश की बातों में मत भटको, जीवन के आधार से चलना शुरू करो। आधार है : मुमुक्षा, मुक्ति की खोज । मुक्ति की खोज उसी को होगी, जिसको बंधन अनुभव हो रहा है।
गुरजिएफ कहा करता था : अगर किसी कारागृह में लोग बंद हों, और भूल गये हों कि यह कारागृह है, तो स्वभावतः वे निकलने की कोई चेष्टा नहीं करेंगे कि जेल से बाहर निकल जायें, क्योंकि जेल है ही कहां? कारागृह में रहनेवाले लोग अगर समझ रहे हों कि यही घर है, तो उनकी चेष्टा यही होगी कि इस घर को कैसे सुंदर बनायें ? कैसे इसकी दीवालों पर रंग रोगन करें, कैसा फर्नीचर जमायें? कैसा सजायें इस घर को? और अगर कोई उनसे कहे कि बाहर आ जाओ, तो वे नाराज होंगे। कोई उनसे कहे, बाहर खुला आकाश भी है. इन अंधेरी कोठरियों में मत रहो. तो वे प्रसन्न नहीं होंगे। क्योंकि जिन्हें तम अंधेरी कोठरियां कह रहे हो. सार-सर्वस्व है, वह उनका घर है।
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