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महावीर-वाणी भाग : 2
'ये नौ सत्य तत्व हैं। ऐसे सत्य तत्वों के संबंध में सदगुरु के उपदेश से या स्वयं अपने ही भाव से श्रद्धान करना (श्रद्धा करना) सम्यकत्व कहा गया है।' __ सम्यकत्व का अर्थ है : सम्यसंतुलित हो जाना—टोटली बैलेंस्ड । यह घटना दो तरह से घट सकती है : सद्गुरु के उपदेश से, या
अपने ही प्रयास से। __ सदगुरु के उपदेश का क्या अर्थ है? सदगुरु का मतलब है कि जिसने स्वयं जाना हो । पंडित के उपदेश से यह घटना नहीं घट सकती। जिसने स्वयं जाना हो, उसके उपदेश से घट सकती है। लेकिन सदगुरु के उपदेश से भी नहीं घटेगी, अगर आप उपदेश लें ही न, अगर कछ आप में प्रवेश ही न करे । तो वर्षा के पानी की तरह आपके शरीर पर गिरकर उपदेश विदा हो जायेगा, धूल में खो जायेगा। ___ वर्षा का पानी गिरता है। अगर आप उसे आकाश से सीधे ही ले लें अपने मुंह में, तो वह शुद्ध होता है। और अगर जमीन पर गिर जाए, तो अशुद्ध हो जाता है। पंडितों से सुनना, जमीन पर गिरे हुए पानी को इकट्ठा करना है; और महावीर जैसे व्यक्ति से सुनना, सीधे आकाश से गिरी शुद्ध बूंद को मुंह में ले लेना है।
सदगुरु का अर्थ है : जिसने स्वयं जाना है, जो दूसरों के जाने हुए को नहीं कह रहा है, जिसकी अपनी प्रतीति, अपना दर्शन है; जिसका अपना साक्षात्कार है–उसके उपदेश से यह घटना घटती है । लेकिन उसके उपदेश को लेने की तैयारी हो, मन खुला हो, हृदय के द्वार उन्मुक्त हों, तो ही श्रद्धा घटित होती है। सुनकर ही घटित हो जाती है, अगर सुननेवाला तैयार हो । इसलिए महावीर ने सुननेवालों को अलग ही नाम दिया। उन्होंने सुननेवालों को 'श्रावक' कहा है।
सभी सुननेवाले श्रावक नहीं होते हैं। यहां इतने लोग सुन रहे हैं, सभी श्रावक नहीं हैं । जो श्रावक है, वह सुनकर ही श्रद्धा को उपलब्ध हो जाएगा। श्रावक का अर्थ है : जो इतना हार्दिक रूप से सुन रहा है, इतनी सहानुभूति से सुन रहा है, इतने प्रेम से सुन रहा है कि भीतर कोई भी विरोध, कोई रेजिस्टेन्स नहीं है, कोई बचाव नहीं है । वह सब तरह से बह जाने को राजी है। गुरु जहां ले जाये उस धारा में बह जाने को राजी है। गुरु चाहे मौत में ही क्यों न ले जाये, तो भी वह जाने को राजी है। ऐसे सरल भाव से सुनी गई बात से श्रद्धा का जन्म होता है। और या फिर अपने ही प्रयास से।
सौ में से एक व्यक्ति अपने प्रयास से भी कर सकता है। लेकिन उसका अपना प्रयास भी इसलिए सफल होता है कि पिछले जन्मों में सदगुरु के पास कुछ जाना है; उसे कुछ झलक मिल गई है, कोई संपर्क मिल चुका है।
जैसे जन्म अपने ही द्वारा नहीं मिलता, मां-बाप से मिलता है; वैसे ही श्रद्धा भी वस्तुतः अपने ही द्वारा नहीं मिलती, वह भी सदगुरु से ही मिलती है। कोई आदमी जैसे अपने को ही जन्म देने की कोशिश करे कि मैं अपना ही मां-बाप भी बन जाऊं, तो बहुत मुसीबत होगी, बहुत झंझट होगी। शायद यह हो भी नहीं सकता है। वैसे ही ज्ञान का जन्म भी, जहां ज्ञान घटा हो, उस आदमी के निकट आसानी से हो जाता है।
यह इसलिए नहीं कि गरु आपको ज्ञान दे देता है। ज्ञान कछ दी जानेवाली चीज नहीं है। पर गरु कैटलिटिक एजेंट है. गरु उत्परेरक तत्व है। उसकी मौजूदगी में घटना घट जाती है। घटना तो आपके भीतर ही घटती है, घटना आपसे ही घटती है, पर उसकी मौजूदगी आपको हिम्मत और साहस दे देती है। उसकी मौजूदगी में आप निर्दोष हो पाते हैं। उसकी मौजूदगी में उसका संगीत आपको शांत कर पाता है। उसकी उपस्थिति आपको उठा लेती है उन ऊंचाइयों पर, जिन पर आप अपने ही बल नहीं उठ सकते। उन ऊंचाइयों पर सत्य का दर्शन हो जाता है। उस सत्य के दर्शन की स्थिति को 'सम्यकत्व' कहा है।
ऐसा व्यक्ति संतुलित हो जाता है, सम्यक हो जाता है। और जो व्यक्ति सम्यकत्व को उपलब्ध हो गया, उसके जीवन की सबसे बड़ी
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