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आत्मा का लक्षण है ज्ञान
काला रंग है।'
पत्नी को थोड़ी हैरानी हुई कि 'गाय की चर्चा उठाने की क्या जरूरत है?' पर उसने बात टाली । उसने कहा, कुछ और अपने संबंध में कहो—प्रसन्न तो हो, आनंदित तो हो?' नसरुद्दीन ने कहा, 'बहुत आनंदित हूं, थोड़ा मुझे गाय के संबंध में और बताने दे। बड़ी प्यारी
य है, उसकी चमड़ी बड़ी चिकनी और कोमल है।' पत्नी ने कहा कि 'छोड़ो भी गाय की बकवास, गाय से क्या लेना-देना है। मैं तुम्हारे संबंध में जानने को आतुर हूं, और तुम एक मूर्ख गाय के संबंध में कहे चले जा रहे हो।' नसरुद्दीन ने कहा, 'क्षमा कर, इट सीम्स आइ फरगाट टु टैल यू दैट नाउ आइ एम ए बुल इन पंजाब-मैं भूल गया बताना कि मैं एक बैल हो गया हूं, सांड हो गया हूं पंजाब में।' सांड की उत्सुकता गाय में ही हो सकती है। ___ जीवन कामवासना है, जैसा जीवन हम जानते हैं। पुरुष उत्सुक है स्त्री में, स्त्री उत्सुक है पुरुष में । तप का अर्थ है-यह उत्सुकता अपने में आ जाये, दूसरे से हट जाये । जब तक यह उत्सुकता दूसरे में है-महावीर कहते हैं-संसार है । जिस दिन यह सारी उत्सुकता अपने में लौटकर वर्तुल बन जाती है, तप शुरू हुआ। तप कहना उचित है, क्योंकि अति कठिन है यह बात-दूसरे से उत्सुकता अपने में ले आना । होनी तो नहीं चाहिये, कठिन होनी तो नहीं चाहिये क्योंकि दूसरे में भी हम उत्सुक अपने लिए ही होते हैं । गहरे में तो उत्सुकता अपने ही लिए है। दूसरे के द्वारा घूमकर, अपने में लौटते हैं।
उपनिषद कहते हैं कोई पति, पत्नी को प्रेम नहीं करता, पत्नी के द्वारा अपने को ही प्रेम करता है। कोई मां बेटे को प्रेम नहीं करती, बेटे के द्वारा अपने को ही प्रेम करती है। प्रेम तो हम अपने को ही करते हैं, लेकिन हमारा प्रेम वाया—किसी से होकर आता है। जब हमारा प्रेम किसी से होकर आता है, तो उसका नाम अब्रह्मचर्य है । और जब हमारा प्रेम किसी से होकर नहीं आता है, सीधा अपने में ठहर जाता है-तपश्चर्या है, ब्रह्मचर्य है। ___ तप शब्द चुनना जरूरी था, क्योंकि जब कोई व्यक्ति अपनी ऊर्जा को बाहर जाने से रोकता है, तो उत्तप्त होता है; सारा जीवन एक नई अग्नि से भर जाता है । वह अग्नि बड़े अदभुत काम करती है, जीवन की पूरी कीमिया को बदल देती है। जीवन का एक-एक कोष्ठ उस अग्नि के प्रवाह से बदल जाता है । अलकेमिस्ट कहते हैं कि लोहा सोना हो जाता है, अगर अग्नि पास हो । तप उसी अग्नि का नाम है, जिसमें आपकी साधारण धातु लोहा स्वर्ण बन जायेगी। जो कचरा है वह जल जायेगा।
उपनिषदों ने नचिकेत-अग्नि की बात कही है। वह इसी अग्नि की चर्चा है। कठोपनिषद में नचिकेता पूछता है यम से कि किस भांति उस परम तत्व को पाया जा सकता है, जो मृत्यु के पार है। तो नचिकेता को यम ने कहा है कि तीन तरह की अग्नियों से गुजरना जरूरी है, और चूंकि तू पहला पूछनेवाला है, इसलिए वे अग्नियां तेरे ही नाम से पहचानी जायेंगी; नचिकेत-अग्नि कही जायेंगी। वे तीन अग्नियां-महावीर उन्हीं तीन अग्नियों की प्रक्रिया को तप कहते हैं। _ दूसरे से अपने पर लौटना पहली अग्नि है। दूसरे से अपने पर लौटना, दूसरे को खोना, छोड़ना-पहली अग्नि है। दूसरी अग्नि में स्वयं को भी छोड़ना है। पहली अग्नि में दूसरा जल जायेगा, सिर्फ मैं बचूंगा । लेकिन मैं का कोई उपयोग नहीं है, जब तू खो जाये । वह तू का ही संदर्भ है, उसका ही अटका हुआ हिस्सा है। दूसरी अग्नि में मुझे भी जल जाना है; मैं भी न बचूं, शून्य रह जाए। और तीसरी अग्नि में शून्य का भाव भी न रह जाये; इतनी शून्यता हो जाये कि यह भी भाव न रहे कि अब मैं शून्य हो गया, कि अब मैं निरअहंकारी हो गया।
इन तीन अग्नियों का नाम तप है। और इस तप से जो गुजरता है वह उस परम अवस्था को उपलब्ध हो जाता है, जिसे महावीर ने 'मुक्ति' कहा है; परम स्वतंत्रता, 'मोक्ष' कहा है।
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