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महावीर-वाणी भाग : 2
लगते हैं, जैसे कि बड़ा भारी काम कर रहे हैं, कि कोई बड़ी उपलब्धि कर ली है आपने! ___ आप चिंताओं में रस लेते हैं। लोग अपने दुख को कितने रस से सुनाते हैं। आप ऊबते हैं, वे नहीं ऊबते । उनकी दुख कथा आप सुनो, कितना रस लेते हैं । पश्चिम में तो पूरा धंधा खड़ा हो गया है साइको-एनालिसिस का । वह पूरा धंधा इस बात पर निर्भर है कि लोग अपना दुख सुनाने में रस लेते हैं। और अब कोई राजी नहीं है सुनने को, किसी के पास समय नहीं है । तो प्रोफेशनल सुननेवाला चाहिए। वह जो साइको-एनालिस्ट है, सुननेवाला है, वह प्रोफेशनल है। वह पैसा लेता है । उसको कोई मतलब नहीं है। वह बड़े गौर से सुनता है। लेकिन पता नहीं कि वह गौर और उसका ध्यान, सिर्फ दिखावा भी हो सकता है।
मैंने सुना है कि एक दिन फ्रायड को उसके एक युवक शिष्य ने पूछा कि 'मैं तो थक जाता हूं, दो-चार-पांच मरीजों को सुनने के बाद, और आप शाम को भी ताजे दिखाई पड़ते हैं।' फ्रायड ने कहा, 'सुनता ही कौन है? सिर्फ चेहरे का ढंग होता है कि हां, सुन रहे हैं। मगर वह आदमी हल्का होकर ठीक भी हो जाता है।'
दुख की चर्चा करने में रस आता है, उससे लगता है कि आप महत्वपूर्ण हैं, कुछ आपकी जिंदगी में भी हो रहा है। मैंने सुना है कि एक स्त्री एक डाक्टर के पास गई। और उसने कहा कि कोई न कोई आपरेशन कर ही दें।' डाक्टर ने कहा, 'लेकिन तुझे कोई जरूरत ही नहीं है, तू बिलकुल स्वस्थ है।' उसने कहा, 'वह तो सब ठीक है, लेकिन जब भी स्त्रियां मिलती हैं-कोई कहती है उसका अपेन्डिक्स का आपरेशन हो गया है, किसी का टान्सिल का हो गया है, मेरा कुछ भी नहीं हुआ है। तो जिंदगी बेकार ही जा रही है-कुछ भी कर दें, चर्चा के लिए ही सही।'
आदमी अपनी बीमारी में, अपने दुख में, अपनी पीड़ा में, अपनी चिंता में रस ले रहा है। महावीर उस रस को ही बंध कहते हैं। 'पुण्य','पाप'–महावीर के हिसाब से पुण्य पाप की बड़ी अलग धारणा है। महावीर पुण्य, पाप को भी पौदगलिक कहते हैं, मैटीरियल कहते हैं। वे कहते हैं, जब आप पाप करते हैं तब आप की चेतना के पास खास तरह के परमाणु इकट्ठे हो जाते हैं, जब आप पुण्य करते हैं तब खास तरह के परमाणु इकट्ठे हो जाते हैं। इसलिए महावीर कहते हैं, पुण्य करने से कोई मुक्त नहीं होगा, क्योंकि पुण्य भी परमाणुओं को इकट्ठा करता है। पुण्य करने से अच्छा शरीर मिल सकता है, पुण्य के परमाणु होंगे । और पाप करने से बुरा शरीर मिल सकता है, बुरे परमाणु होंगे।
महावीर कहते हैं, पाप है, जैसे लोहे की हथकड़ियां और पुण्य है, जैसे सोने की हथकड़ियां । लेकिन सोने की हथकड़ियों को हथकड़ियां नहीं कहते, उनको आभूषण कहते हैं। जब आपको किसी स्त्री को बांधना हो, तो लोहे की हथकड़ी भेंट मत करना-सोने की, उनको लोग आभूषण कहते हैं। सोना जिस तरह बांध लेता है, उतना लोहा कभी भी नहीं बांध सकता, क्योंकि लोहे में कोई रस पैदा होता नहीं मालूम होता। इसलिए महावीर कहते हैं, पुण्य भी बांधता है।
बुरे कर्म तो बांधते ही हैं, अच्छे कर्म भी बांध लेते हैं। और हर कर्म पौदगलिक है—यह बड़ी क्रांतिकारी धारणा है। महावीर कहते हैं जब तुम शुभ कर्म करते हो तो तुम्हारे पास शुभ परमाणु इकट्ठे होते हैं, वस्तुतः । तुम्हारी चेतना के आस-पास अच्छे तत्व इकट्ठे हो जाते हैं। इसलिए तुम्हें अच्छा लगता है। जैसे चारों तरफ फूल खिले हों और किसी को अच्छा लगे, ऐसा ही पुण्य करते वक्त अच्छा लगता है। पाप करते वक्त बुरा लगता है, जैसे कोई दुर्गंध के बीच बैठा हो।। ___ तो जब आप चोरी करते हैं तो मन को बुरा लगता है, झूठ बोलते हैं तो मन को बुरा लगता है, क्रोध करते हैं तो मन को बुरा लगता है; उस बुरे लगने का कारण है कि आप गलत, विकृत, दुर्गधयुक्त परमाणुओं को अपने पास बुला रहे हैं, निमंत्रण दे रहे हैं। और जब आप किसी पर दया करते हैं, किसी पर करुणा प्रगट करते हैं, किसी गिरे को उठने का सहारा दे देते हैं-कोई छोटा-सा कृत्य भी कि
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