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महावीर-वाणी भाग : 2
न डाले। तब डर लगेगा कि फिर कहीं ऐसे न असदगुरु हमें चुन लें। यहां जरा और बारीक बात है । जिस तरह मैंने कहा कि शिष्य का अहंकार होता है और इसलिए उसे ऐसा भास होना चाहिए कि मैंने चुना । उसी तरह असदगुरु का अहंकार होता है, उसे इसी में मजा आता है कि शिष्य ने उसे चुना । थोड़ा समझ लें।। ___ असदगुरु को तभी मजा आता है, जब आपने उसे चुना हो। असदगुरु आपको नहीं चुनता। सदगुरु आपको चुनता है। असदगुरु कभी आपको नहीं चुनता । उसका तो रस ही यह है कि आपने उसे माना, आपने उसे चुना । इसलिए आप चुनने की बहुत फिक्र न करें, खलेपन की फिक्र करें। सम्पर्क में आते रहें. लेकिन बाधा न डालें,खले रहें।
इजिप्शियन साधक कहते हैं, व्हेन द डिसाइपल इज़ रेडी, द मास्टर एपीयर्स। और आपकी रेडीनेस, आपकी तैयारी का एक ही मतलब है कि जब आप पूरे खुले हैं, तब आपके द्वार पर वह आदमी आ जायेगा, जिसकी जरूरत है। क्योंकि आपको पता नहीं है कि जीवन एक बहुत बड़ा संयोजन है। आपको पता नहीं है कि जीवन के भीतर बहुत कुछ चल रहा है पर्दे की ओट में। आपके भीतर बहुत कुछ चल रहा है पर्दे की ओट में। __ जीसस को जिस व्यक्ति ने दीक्षा दी, वह था जान दबैटिस्ट, बप्तिस्मा वाला जान । बप्तिस्मा वाला जान एक बूढ़ा सदगुरु था, जो जोर्डन नदी के किनारे चालीस साल से निरन्तर लोगों को दीक्षा दे रहा था। बहुत बूढ़ा और जर्जर हो गया था, और अनेक बार उसके शिष्यों ने कहा कि अब बस, अब आप श्रम न लें। लाखों लोग इकट्ठे होते थे उसके पास । हजारों लोग उससे दीक्षा लेते थे। जीसस के पूर्व बड़े से बड़े गुरुओं में वह एक था। लेकिन बप्तिस्मा वाला जान कहता है कि मैं उस आदमी के लिए रुका हूं, जिसे दीक्षा देकर मैं अपने काम से मुक्त हो जाऊंगा। जिस दिन वह आदमी आ जायेगा, उस दिन मैं विलीन हो जाऊंगा । जिस दिन वह आदमी आ जायेगा, उसके दूसरे दिन तुम मुझे नहीं पाओगे, और फिर एक दिन आकर जीसस ने दीक्षा ली, और उस दिन के बाद बप्तिस्मा वाला जान फिर कभी नहीं देखा गया। शिष्यों ने उसकी बहुत खोज की, उसका कोई पता न चला कि वह कहां गया। उसका क्या हुआ। __ वह जीसस के लिए रुका हुआ था। इस आदमी को सौंप देना था। लेकिन इसकी प्रतीक्षा करनी पड़ेगी, जब यह आदमी आये। और इस आदमी के पास जान जा सकता था । जीसस का गांव जोर्डन से बहुत दूर न था । वह जाकर भी दीक्षा दे सकता था, लेकिन तब भूल हो जाती । तब शायद जीसस उस दीक्षा को ऐसे ही न झेल पाते, जैसा कृष्णमूर्ति को मुसीबत हो गयी।
पास ही था गांव, लेकिन जान वहां नहीं गया उसने प्रतीक्षा की कि जीसस आ जाये । जीसस को यह खयाल तो होना चाहिए कि मैंने चुना है । बुनियादी अंतर पड़ जाते हैं। इतना खयाल देने के लिए बूढ़ा आदमी श्रम करता रहा और प्रतीक्षा करता रहा । जीसस के आने पर तिरोहित हो गया। ___ एक आयोजन है जो भीतर चल रहा है, उसका आपको पता नहीं है। आपको पता हो भी नहीं सकता। आप सतह पर जीते हैं। कभी अपने भीतर नहीं गये तो जीवन के भीतरी तलों का आपको कोई अनुभव नहीं है। जब आप खिंचे चले जाते हैं; किसी आदमी की तरफ, तो आप इतना ही मत सोचना कि आप ही जा रहे हैं। कोई खींच भी रहा है । सच तो यह है कि जब चुम्बक खींचता होगा लोहे के टुकड़े को तो लोहे का टुकड़ा नहीं जानता है कि चुम्बक ने खींचा । चुम्बक का उसे पता भी नहीं है। लोहे का टुकड़ा अपने मन में कहता होगा, मैं जा रहा हूं। लोहा जाता है। चुम्बक खींचता है, ऐसा लोहे के टुकड़े को पता नहीं चलता।
सदगुरु एक चुम्बक है, आप खिंचे चले जायेंगे। आप अपने को खुला रखना । फिर यह भी जरूरी नहीं है कि सब सदगुरु आपके काम के हों। असदगुरु तो काम का है ही नहीं। सभी सदगुरु भी काम के नहीं हैं, जिससे आपका ताल-मेल बैठ जाये, जिसके साथ आपकी भीतरी रुझान ताल-मेल खा जाये। तो आप खले रहना।
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