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महावीर वाणी भाग 2
संयम का इतना ही अर्थ है कि दोनों तरफ विषमताएं हैं। भोग की है, त्याग की है, दोनों के बीच संयम है। नरक की, स्वर्ग की दोनों के बीच संयम । सुख की, दुख की, दोनों के बीच संयम । शत्रु भी झुकाते हैं। मित्र भी झुकाते हैं। दोनों के बीच संयम है। कोई न झुका पाये और आपकी नाव बीच में चल पाये। ऐसा अगर आप बीच में नाव को चला सकें सीधी रेखा में, तो किसी दिन आप तट पर पहुंच सकते हैं । लेकिन सीधी रेखा में चलने वाले आदमी के अनुभव बदल जायेंगे। उसके जीवन में पुनरुक्ति नहीं होनी चाहिए। जिसके जीवन में पुनरुक्ति हो रही है, वह आदमी गोल-गोल घूम रहा है। लेकिन इसका मतलब यह मत समझना आप कि रोज नया भोजन होगा तो पुनरुक्ति न होगी । कि रोज नये कपड़े पहन लेंगे तो पुनरुक्ति न होगी। कपड़े- भोजन का सवाल नहीं है, वृत्ति का सवाल है। आपकी वृत्तियां पुनरुक्ति में तो नहीं घूम रही हैं। सरकुलर तो नहीं है, इसका ध्यान रखना चाहिए।
कभी आपने खयाल किया कि जब भी आप क्रोध करते हैं, फिर वैसे ही करते हैं जैसा पहले किया था। कुछ भी न सीखा जीवन से। जब फिर प्रेम में गिरते हैं तब फिर वैसे ही गिरते हैं जैसे पहले गिरे थे। फिर वही बातें करने लगते हैं जो पहले करके उपद्रव खड़ा कर चुके हैं। फिर वही मूढ़ता, फिर पुनरुक्ति कर रहे हैं आप। जिंदगी को थोड़ा जांचें, पीछे लौटकर एक नजर फेकें । जिन्दगी पर एक सर्च लाइट फेंकना जरूरी है पीछे जिन्दगी पर । उसमें देखें कि आप जिंदगी जी रहे हैं कि चक्कर में घूम रहे हैं। अगर आप चक्कर में घूम रहे हैं तो समझें कि यही संसार है।
हम संसार का अर्थ ही चक्कर करते हैं। इस मुल्क में हमने संसार शब्द को ही इसलिए चुना है। संसार का मतलब होता है, द व्हील, चक्का । वह गोल-गोल घूमता रहता है। भ्रम होता है यात्रा का, मंजिल नहीं आती । जिसे भी मंजिल लानी है, उसे एक रेखा में चलने की कला सीखनी पड़ती है, वही धर्म है ।
जो कल हो चुका, उससे सीखें और पार जायें, दुहराएं मत। और जिंदगी में जिन रास्तों से गुजर गये उन पर से बार-बार गुजरने का मोह छोड़ दें। कोई सार नहीं है। जहां से गुजर गये, वहां से गुजर ही जायें, उसको पकड़े मत रखें। कल किसी ने गाली दी थी, वह बात हो गयी। उस रास्ते को छोड़ दें, आगे बढ़ें लेकिन वह गाली अटकी हुई है। जिसके मन में कल की गाली अटकी हुई है, वह वहीं रुक गया। उसने गाली को मील का पत्थर बना लिया। जमीन में गाड़ दिया खम्बा और उसने कहा, अब हम यहीं रहेंगे। अब हम आगे नहीं
जाते ।
अगर आपको कल अब भी सता रहा है, बीता हुआ कल, आप वहीं रुक गये हैं। अगर इसको हम सोचें तो हमें तो बड़ी हैरानी होगी कि हम कहां रुक गये । मनोवैज्ञानिक कहते हैं आमतौर से लोग बचपन में ही रुक जाते हैं। फिर शरीर ही बढ़ता रहता है। न बुद्धि बढ़ती है, न आत्मा बढ़ती है, कुछ नहीं बढ़ता है, वहीं रुक जाते हैं। इसलिए आपके बचपन को जरा में निकाला जा सकता है। अभी एक आदमी आप पर हमला बोल दे तो आप एकदम चीख मारकर नाचने-कूदने लगेंगे। आप भूल जायेंगे कि आप क्या कर रहे हैं। अगर आपका चित्र उतार लिया जाये, या आपको स्मरण दिलाया जाये तो यह शायद आप जब पांच साल के बच्चे थे, जो करते, वही आपने किया | मतलब, मनोवैज्ञानिक कहते हैं, आपका रिग्रेशन हो गया, आप पीछे लौट गये बचपन में। उस खूंटे पर पहुंच गये, जहां आप बंधे हैं।
इसलिए मनसविद किसी भी व्यक्ति की मानसिक बीमारी दूर करना चाहते हैं तो पहले उसके अतीत जीवन में उतरते हैं, खासकर उसके बचपन में उतरते हैं। वे कहते हैं, जब तक हम तुम्हारा बचपन न जान लें तब तक हम जान नहीं सकते, तुम कहां रुक गये हो । कहां रुक जाने से तुम्हारा सारा उपद्रव पैदा हो रहा । हम सब रुके हुए लोग हैं। गति नहीं है जीवन में, यात्रा नहीं है। महावीर कहते हैं, महर्षिजन पार कर जाते हैं इस सागर को पार करने का मार्ग है, संयम । साधना का सूत्र
है—संयम, संतुलन,
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