________________
साधना का सूत्र : संयम
अतियों से बच जाना । दो अतियों के बीच जो बच जाता है, वह तट पर पहुंच जाता है। लेकिन हम क्या करते हैं? हम घड़ी के पेंडुलम की तरह हैं।
घड़ी का पेंडुलम, पुरानी घड़ियों का-नयी घड़ियों में खयाल नहीं आता, कुछ पुरानी घड़ी पर जरा ध्यान करना चाहिए। दीवार घड़ी का पेंडुलम जाता है बायें, दायें, घूमता रहता है। जब वह दायें जाता है तब ऐसा लगता है कि अब बायें कभी न आयेगा । वहां भूलकर रहे हैं आप । जब वह दायें जा रहा है तब वह बायें आने की ताकत जुटा रहा है, मोमेंटम इकट्ठा कर रहा है। वह बायें जा ही इसलिए रहा है कि दायें जाने की ताकत इकट्ठी हो जाये । फिर वह दायें जायेगा । जब वह दायें जाता है तब वह फिर बायें जाने की ताकत इकट्ठी करता है। और इसी तरह वह घूमता रहता है। हम भी...हममें से एक आदमी कहता है कि उपवास करना है। ये अब बायें जा रहे हैं। अब ये फिर भोजन जोर से करने की ताकत जुटायेंगे। एक आदमी कहता है, ऊब गये हम तो वासनाओं से, अब त्याग करना है, अब यह बायें जा रहे हैं।
अतियों में डोलना बहुत आसान है। इसलिए एक बहुत बड़ी घटना घटती है दुनिया में । क्रोधी अगर चाहे तो एक क्षण में क्षमावान हो जाते हैं। दुष्ट अगर चाहें तो एक क्षण में शांति को धारण कर लेते हैं। भोगी अगर चाहें तो एक क्षण में त्यागी हो जाते हैं। देर नहीं लगती। क्योंकि एक अति से दूसरी अति पर लौट जाने में कोई अड़चन नहीं है। बीच में रुकना कठिन है। भोगी संयम पर आ जाये, यह कठिन है। त्याग पर जा सकता है। त्यागी भोग में आ जायें, यह आसान है । संयम में आना कठिन है । एक उपद्रव से दूसरा उपद्रव चुनना आसान है, क्योंकि उपद्रव की हमारी आदत है, उपद्रव कोई भी हो, उसे हम चुन सकते हैं। बीच में रुक जाना, निरुपद्रवी हो जाना अति कठिन है। ___ महावीर संयम को सूत्र कहते हैं, धर्म का । यह शरीर है नाव । इसका उपकरण की तरह उपयोग करें। यह आत्मा है यात्री, इसे वर्तुलों में मत घुमायें, इसे एक रेखा में चलायें। यह संसार है सागर, इसमें एक डांड की नाव मत बनें। इसमें दोनों पतवार हाथ में हों, और दोनों पतवार बीच में सधने में सहयोगी बनें, इस पर दृष्टि हो। तो एक दिन व्यक्ति जरूर ही संसार के पार हो जाता है।
संसार के पार होने का अर्थ है-दुख के पार हो जाना, संताप के पार हो जाना। संसार के पार होने का अर्थ है-आनन्द में प्रवेश। जिसे हिन्दुओं ने 'सच्चिदानंद' कहा है, उसे महावीर ने 'मोक्ष' कहा है। उसे ही बुद्ध ने 'निर्वाण' कहा है। उसे जीसस ने 'किंगडम आफ गाड' कहा है, ईश्वर का राज्य कहा है। कोई भी हो नाम, जहां हम हैं उपद्रव में, वहां वह नहीं है। इस उपद्रव के पार कोई तट है, जहां कोई आंधी नहीं छूती, जहां कोई तूफान नहीं उठता, जहां सब शून्य और शांत है।
इतना ही। अब हम कीर्तन करें।
175
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org