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महावीर-वाणी भाग : 2
हो? एकाध ऐसा क्षण आपको खयाल है? जब आप अचानक अपने से सुखी हो गये हों? _ नहीं, कभी कोई मकान सुख दिया, कभी कोई लाटरी सुख दी, कभी कोई स्त्री सुख दी, पुरुष सुख दिया, कभी कोई हीरा सुख दिया, कभी कोई आभूषण सुख दिया, कभी कोई कपड़ा सुख दिया। ___ कभी आपको ऐसा खयाल है कि आपने भी अपने को सुख दिया हो? ऐसी कोई याद है? बड़ी हैरानी की बात है, हमने कभी अपने को आज तब सुख नहीं दिया। हमें पता ही नहीं कि खुद को सुख देने का क्या मतलब होता है। सुख का मतलब ही दूसरे से जुड़ा हुआ है। तब एक बड़ी मजेदार दुनिया बनती है। जिस दुनिया में कोई आदमी अपने को सुख नहीं दे पा रहा है, उस दुनिया में सब एक दूसरे को सुख दे रहे हैं । पत्नी पति को सुख दे रही है, पति पत्नी को सुख दे रहा है । न पति अपने को सुख दे पा रहे हैं, न पत्नी अपने को सुख दे पा रही है और जो आपके पास है ही नहीं, वह आप कैसे दूसरे को दे रहे हैं, बड़ा मजा है।
जो है ही नहीं, वह आप दसरे को दे रहे हैं। इसलिए आप सोचते हैं. दे रहे हैं। दसरे तक पहंचता ही नहीं। पहंचेगा कैसे? इसलिए पत्नी कहे चली जाती है कि तुम मुझे सुख नहीं दे रहे हो, पति कहे चला जाता है कि तू मुझे सुख नहीं दे रही है। मैं तुझे सुख दे रहा हूं,
और तू मुझे सुख नहीं दे रही है। हम सब एक दूसरे से कह रहे हैं कि हम सुख दे रहे हैं और तुम सुख नहीं दे रहे हो । सारी शिकायत यही है जिन्दगी की, सारा शिकवा यही तो है कि कोई सुख नहीं दे रहा है और हम इतना बांट रहे हैं। और आप अपने तक को दे नहीं पाते, और दूसरों को बांट रहे हैं। __ थोड़ा अपने को दें। और ध्यान रहे, जो अपने को दे सकता है, उसे दूसरों को देना नहीं पड़ता। उसके आसपास की हवा में दूसरे सुखी हो सकते हैं, हो सकते हैं, हो नहीं जाते। वह भी उनकी मर्जी है। नहीं तो महावीर के पास खड़े होकर भी आप दुखी ही होंगे। लोग इतने कुशल है दुख पाने में, कहीं से भी दुख खोज लेंगे। उनको मोक्ष भी भेज दो तो घड़ी दो घड़ी में वे सब पता लगा लेंगे कि क्या-क्या दुख है । मोक्ष भी उनसे बच नहीं सकता । यह जो महावीर वगैरह कहते हैं मोक्ष में आनन्द ही आनन्द है, इनको पता नहीं आदमियों का । असली आदमी पहुंच जायें तब पता चलेगा कि वहां दुख ही दुख बता देंगे कि इसमें क्या आनन्द है। ___ महावीर ने मोक्ष की बात कही है कि 'सिद्ध शिला' पर शाश्वत आनन्द है। बर्टेन्ड रसल को इससे बहुत दुख हुआ। बर्टेन्ड रसल ने लिखा है कि 'शाश्वत'! सदा रहेगा! फिर कभी उससे छुटकारा न होगा! फिर बस आनन्द ही आनन्द में रहना पड़ेगा! फिर बदलाहट नहीं होगी! इससे मन बहुत घबराता है। ___ बर्टेन्ड रसल ने कहा है कि इससे तो नरक बेहतर । कम से कम अदल-बदल तो कर सकते हैं। और यह क्या कि सिद्ध शिला पर बैठे हैं, न हिल सकते, न डुल सकते, और आनन्द ही आनन्द बरस रहा है । कब तक? कितनी देर बर्दाश्त करिएगा? थोड़ा सोचें आप भी, आपको भी लगेगा कि प्रास्पेक्ट्स बहुत अच्छे नहीं हैं। इसमें से भी दुख दिखायी पड़ने लगेगा कि नहीं-कभी तो 'जस्ट फार ए चेंज', कभी तो कुछ और उपद्रव भी होना चाहिए, बस आनन्द ही आनन्द! मिठास ज्यादा हो जायेगी। इतनी हम न झेल पायेंगे। हमें थोड़ा तिक्त, नमकीन भी चाहिए। थोड़ा कड़वा, तो उससे थोड़ा जीभ सुधर जाती है। और फिर स्वाद लेने के लिए तैयार हो जाती है।
हमें दुख भी चाहिए तो ही हम सख को अनुभव कर पायेंगे। तो महावीर का जो परम आनन्द है. वह बर्टेन्ड रसल को भयदायी म पड़ा, पड़ेगा। हमको भी पड़ेगा। वह तो हम बिना समझे कहते रहते हैं कि हे भगवान, कब मोक्ष होगा? अभी पता नहीं कि मोक्ष का मतलब क्या है? अगर हो जाये मोक्ष तो बस एक ही प्रार्थना रहेगी, हे भगवान, मोक्ष के बाहर जाना कब हो? ___ आदमी अपना दुश्मन है, और जब तक उसकी यह दुश्मनी अपने से नहीं टूटती, उसके लिए कोई आनन्द नहीं है। आदमी अपना मित्र हो सकता है। बड़ी स्वार्थ की बात मालुम पड़ेगी कि महावीर कहते हैं अपने मित्र हो जाओ। लेकिन, स्वार्थ की बात है नहीं, क्योंकि
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