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महावीर-वाणी भाग : 2
जीवन वृक्ष आप खुद हैं, इसलिए अपनी जड़ों और अपने पत्तों को जोड़ नहीं पाते । समझ नहीं पाते कि क्या मामला है । जब दुख हो, तब दुख के पत्ते को पकड़कर पीछे उतरना चाहिए जड़ तक, कि कहां से दुख हुआ, और जड़ को काटने की चिंता करनी चाहिए। ___ इसलिए महावीर कहते हैं, ये चार हैं जड़ें-क्रोध, मान, माया, लोभ । चारों इतने अलग-अलग नहीं हैं, एक ही चीज के चार चेहरे हैं—एक ही चीज के, एक ही घटना के । बुद्ध ने उस घटना को नाम दिया है, जीवेषणा, लस्ट फार लाइफ।
अब यह बड़ी कठिन बात है। लोग कहते हैं, आवागमन हमारा कैसे रुके। पूछो, क्यों? किसलिए, आवागमन से दिक्कत क्या हो रही है आपको? चले जाओ मजे से, पैदा होते जाओ बार-बार, हर्ज क्या है? । __ नहीं, पैदा होने से उन्हें भी तकलीफ नहीं है। जीवन से उन्हें भी कोई कठिनाई नहीं है, लेकिन जीवन में दुख मिलता है, उससे कठिनाई है। दुख न हो और जीवन हो, दुख कट जाये और जीवन हो। हम ऐसी दुनिया चाहते हैं जिसमें रातें न हों, दिन ही दिन हों । हम ऐसी दुनिया चाहते हैं, जहां जवानी ही जवानी हो, बुढ़ापा न हो । स्वास्थ्य हो, बीमारी न हो । मित्र ही मित्र हों, शत्रु न हों। प्रेम ही प्रेम हो, घृणा न हो। ___ इस दुनिया में एक हिस्सा काट देना चाहते हैं और एक को बचा लेना चाहते हैं । और मजा यह है कि वह दूसरा हिस्सा इसीलिए बचा हुआ है कि हम इस एक को बचाना चाहते हैं, हम चाहते हैं दुनिया में मित्र ही मित्र हों । इसलिए शत्रु ही शत्रु हो जाते हैं । हम चाहते हैं, दुनिया में सुख ही सुख हों, इसलिए दुख ही दुख हो जाता है। सुख को बचाना चाहते हैं, दुख को हटाना चाहते हैं, लेकिन सुख जड़ है
और दुख पत्ता है। जिसे हम बचाना चाहते हैं, उसी को बचाने में उसे बचा लेते हैं जिसे हम बचाना नहीं चाहते हैं, जिससे हम छूटना चाहते हैं।
आदमी जब कहता है, कि आवागमन से मुक्ति हो, तो वह यह नहीं कहता कि मैं समाप्त हो जाऊं। वह कहता है, मैं मोक्ष में रहं, मैं स्वर्ग में रहूं। दुख न हो वहां दुख से छुटकारा हो जाये। तो बुद्ध ने कहा है, जीवेषणा, होने की वासना कि मैं रहं, यही तुम्हारे समस्त दुखों का मूल है।
महावीर कहते हैं कि ये जो चार शत्रु हैं, ये भी जीवेषणा से पैदा होते हैं।
क्रोध क्यों आता है? जब कोई आपके जीवन में बाधा बनता है, तब । जब कोई आपको मिटाना चाहता है, या आपको लगता है कि कोई मिटाना चाहता है तब, जब आपको कोई बचाना चाहता है, तब आपको क्रोध नहीं आता।
अगर मैं एक छुरा लेकर आपके पास जाऊं तो आप डरेंगे। छुरे से नहीं डर रहे हैं आप, क्योंकि सर्जन उससे भी बड़ा छुरा लेकर आपके पास आता है । तब आप निश्चिंत टेबल पर लेटे रहते हैं। मुस्कुराते रहते हैं, क्या मामला है? दोनों ही छुरा लेकर आते हैं, लेकिन आपको डर लगता है कि मार न डाला जाऊं, तो डरते हैं। सर्जन बचाने आ रहा है। मर रहे हों तो बचा रहा है । छुरे से कोई डर नहीं है। हाथ पैर कोई काट डाले, इससे डर नहीं है। एक ही गहरे में भय है, कहीं मैं न मिट जाऊं। __ तो जहां लगता है कि कोई मुझे मिटाने आ रहा है, वहां क्रोध खड़ा होता है । जहां लगता है कि कोई मुझे बचाने आ रहा है, वहां मोह खड़ा होता है। जहां लगता है कि मैं बच न सकूँगा, तो बचाने की जो हम चेष्टा करते हैं, वह सब हमारा लोभ है । जब मुझे लगता है कि मैं अच्छी तरह बच गया हूं और अब मुझे कोई नहीं मिटा सकता, तो वह जो अहंकार पैदा होता है, वह हमारा मान है।
लेकिन ये चारों के चारों जीवेषणा के हिस्से हैं। यह चतुर्मूर्ति इनके भीतर जो छिपी है, वह है जीवेषणा । ये चारों चेहरे उसी के हैं। अलग-अलग परिस्थितियों में अलग-अलग चेहरे दिखायी पड़ते हैं, लेकिन भाव एक है कि मैं बचूं। तो जब तक जो आदमी स्वयं को बचाना चाहता है, वह आदमी आत्मा को न पा सकेगा। इसे थोड़ा और हम समझ लें।
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