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आप ही हैं अपने परम मित्र और जब आप इतने तैयार हो जाते हैं भीतर कि अब विस्फोट हो सकता है, तभी। कोई बम ऐसे ही नहीं फूटता, पीछे भीतर बारूद चाहिए। असल में बम फूटता ही इसलिए है कि भीतर विक्षिप्त बारूद मौजूद है। और जब आप भी फूटते हैं तो भीतर बारूद आपको निर्मित करनी पड़ती है।
जब एक आदमी किसी पर क्रोध करता है, तो अपने को दुख देता है, पीड़ा देता है, वह अपना शत्रु है। बुद्ध ने भी ठीक यही बात कही है कि बड़े पागल हैं लोग. दसरों की भलों के लिए अपने को सजा देते हैं। आपने गाली दी मझे. यह भल आपकी रही. और मैं अपने को सजा देता हूं क्रोधित होकर । क्रोधित होकर आपको सजा दे सकता हूं, यह कोई जरूरी नहीं है। अपने को सजा देता हूं। गलती थी आपकी, चोट अपने को पहुंचाता हूं-तब मैं अपना ही शत्रु हूं। अगर हम अपना जीवन खोजें तो हमें पता लगेगा कि हम चौबीस घण्टे अपनी शत्रुता कर रहे हैं। ___ दो तरह के शत्रु हैं जगत में । एक, वे जो भोग की दिशा में भूल करते हैं, वे अपने को सजा दिये जा रहे हैं, अपने को सताये चले जा रहे हैं. अपने को काटे जा रहे हैं. मारे जा रहे हैं। फिर तो वे इतने आदी हो जाते हैं कि वे समझते भी हैं कि अब यह नहीं करना, फिर भी रुक नहीं पाते। ___ अभी मेरे पास एक युवक को लाया गया। एल.एस.डी. और मारीजुआना और सब तरह के ड्रग्ज ले लेकर उसने ऐसी हालत कर ली है, अब तो वह दिन में दो दफा इंजेक्शन अपने हाथ से लगा ले, तभी जी पाता है, नहीं तो जिन्दगी बेकार मालूम पड़ती है । सारे हाथों में छेद हो गये हैं, सारा खून खराब हो गया है, सारे शरीर पर फोड़े-फुसियां, रोग फैल गये हैं। अब वह कहता है कि मैं रुकना चाहता हूं, लेकिन कोई उपाय नहीं। जब सुबह होती है तो जिन्दगी बेकार मालूम पड़ती है, जब तक कि मैं एक इंजेक्शन और न लगा लूं।
आज यूरोप और अमरीका के अनेक-अनेक अस्पताल भरे हुए हैं ऐसे युवक-युवतियों से जो बिलकुल पागल हो गये हैं, अपनी हत्या कर रहे हैं, रोज जहर डाल रहे हैं। लेकिन अब वे यह भी जानते हैं कि अब हम जो कर रहे हैं, यह करने योग्य नहीं है। अब हम मरेंगे इसमें, यह भी जानते हैं। लेकिन रुक भी नहीं सकते। जब सुबह आती है तो बस, नहीं लगाये बिना जिन्दगी बेकार मालूम पड़ती है, लगाओ तो लगता है, अपनी हत्या कर रहे हैं।
क्या हो गया इनको?
लेकिन, यह जरा अतिशय रूप है। कर हम भी यही रहे हैं। जरा हमारे डोज़ हल्के हैं, छोटे हैं। इनके डोज़ मजबूत हैं। हम भी रोज-रोज जहर लेते हैं, लेकिन होम्योपैथिक डोज़ हैं हमारे, इसलिए पता नहीं चलता। रोज लेते रहते हैं। उसके बिना हमारा भी नहीं चलता । कभी एक महिना बिना क्रोध किये देखें, तब पता चलेगा कि चलता है इसके बिना कि नहीं। वह भी डोज़ है, क्योंकि क्रोध होने से शरीर में विषाक्त द्रव्य छट जाते हैं और खन पागल हो जाता है। यह आपको करना पड़ता है बार-बार । यह आदमी बाहर से इंजेक्शन लेकर भीतर जहर डाल रहा है और आप भीतर की ग्रंथियों से जहर को ले रहे हैं, लेकिन फर्क कुछ भी नहीं है । दस-पांच दिन कामवासना से बच जाते हैं तो बुखार मालूम होने लगता है, भारी हो जाती है वासना ऊपर । किसी तरह शरीर की शक्ति को बाहर फेंका जाये तो ही हल्कापन लगेगा, नहीं तो नहीं लगेगा। फेंककर अनुभव होता है, कुछ सार पाया नहीं। लेकिन दो-चार दिन बाद फिर फेंके बिना कोई रास्ता नहीं मालूम पड़ता। क्या कर रहे हैं हम जिन्दगी के साथ?
महावीर कहते हैं, हम अपने शत्रु हैं। भोग में भी हम शत्रुता कर रहे हैं, क्योंकि भोग से कभी आनन्द पाया नहीं। एक बात को सूत्र समझ लें कि जहां से दुख ही मिलता हो, उस मार्ग का अर्थ है कि हम अपने साथ शत्रुता कर रहे हैं। जहां से आनन्द कभी मिलता ही न हो, वहां से मित्रता का क्या अर्थ? जिन्दगी में आपने दुख ही पाया है। सारी जिन्दगी दुख से भरी हुई है। इस दुख से भरी जिन्दगी का
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