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महावीर-वाणी भाग : 2
क्यों? मैं ही क्यों जिम्मेदार हूं अपने सुख और दुख का? जब कोई मुझे गाली देता है, स्वभावतः दिखायी पड़ता है कि वह गाली दे रहा है और मैं दुखी हो रहा हूं। लेकिन यह पूरी श्रृंखला नहीं है। आप आधी श्रृंखला देख रहे हैं।
मेरा कोई अपमान करता है, गाली देता है, मुझे दुख होता है। लेकिन यह श्रृंखला अधूरी है। यह दुख असली में इसलिए होता है कि मैं मान चाहता था, सम्मान चाहता था और कोई गाली देता है, अपमान करता है । जो मैं चाहता था, वह नहीं होता । दुखी होता हूं। मेरे दुख का कारण आपका अपमान करना नहीं है, मेरी मान की आकांक्षा है। मान की आकांक्षा जितनी ज्यादा होगी, उतना ही अपमान का दुख बढ़ता जायेगा। मान की आकांक्षा न होगी, अपमान का दुख कम होता जायेगा। मान की आकांक्षा शून्य हो जायेगी, अपमान में कोई भी दुख नहीं रह जाता। ___ तो दुख अपमान में नहीं है, मान की आकांक्षा में है । और ध्यान रहे, अपमान तो कोई बाद में करता है, पहले मान की आकांक्षा मेरे पास होनी चाहिये। मेरे पास मान की आकांक्षा हो तो ही कोई अपमान कर सकता है। जो मैंने चाहा ही नहीं है, उसके न मिलने पर कैसा दुख? ___ अगर चोर आपको दुख देता है, आपकी चीज छीन ले जाता है, तो ऊपर से साफ दिखता है कि चोर की वजह से दुख हो रहा है। लेकिन चीज को पकड़ने का मोह, परिग्रह का जो भाव था, उसके कारण दुख हो रहा है, वह खयाल में नहीं आता । मूल में चोर नहीं है, मूल में आप ही हैं। मूल में पकड़ना चाहते थे, यह चीज मेरी है । इसे कोई न छीने । और फिर कोई छीन लेता है तो दुख होता है। अपना ही लोभ, अपना ही परिग्रह चोर को दुख देने के लिए अवसर बनता है।
इसे हम खोजें ठीक से तो जहां भी हम दुख पायेंगे, वहां श्रृंखला की एक कड़ी हम देखते नहीं। उसे हम छोड़ जाते हैं। हम अपने को बचाकर सोचते हैं सदा । दूसरे से शुरू करते हैं, जहां से कड़ी की शुरुआत नहीं है। वहां से शुरू नहीं करते जहां से कड़ी की असली शुरुआत है। ___ कौन-सी चीज आपकी है? धो ने कहा है, सब सम्पत्ति चोरी है। इस अर्थ में कहा है कि आप नहीं थे तब भी वह सम्पत्ति थी, आप नहीं होंगे तब भी होगी। कोई सम्पत्ति आपकी नहीं है। आपने नहीं चुरायी होगी, आपके पिता ने चुरायी होगी। पिता ने नहीं चुरायी होगी, उनके पिता ने चुरायी होगी। लेकिन सब सम्पत्ति चोरी है, छीना-झपटी है। फिर कोई दूसरा चोर आपसे छीन रहे हैं। चोरों का समाज है, उसमें एक चोर दूसरे चोर को सुखी कर रहा है, दुखी कर रहा है। __इसे अगर कोई ठीक से देखेगा कि जिसको भी मैं कहता हूं, मेरा, वहीं मैंने दुख की शुरुआत कर दी, क्योंकि मेरा कुछ भी नहीं है। में आता हूँ खाली हाथ, बिना कुछ लिए और जाता हूँ खाली हाथ, बिना कुछ लिए। इन दोनों के बीच में बहुत कुछ मेरे हाथ में होता है। इसमें कुछ भी मेरा नहीं है। जब मेरा कुछ भी नहीं है, ऐसा जिसको दिखायी पड जाये, चोर उसे दखी नहीं करेगा। ___ रिन्झाई के बाबत सुना है मैंने, एक रात चोर उसके घर में घुस गया। कुछ भी न था घर में । रिन्झाई बहुत दुखी होने लगा। अकेला एक कम्बल था, जिसे वह ओढ़कर सो रहा था । वह बड़ा चिन्तित हुआ कि चोर आया, खाली हाथ लौटेगा। रात ठंडी है, इतनी दूर आया, गांव से पांच मील का फासला है। और फकीर के घर में कहां चोर आते हैं! और जो चोर फकीर के घर में आया, उसकी हालत कैसी बुरी न होगी। तो वह बड़ा चिन्तित होने लगा, और कैसे इसकी सहायता करूं, एक कम्बल है, वह मैं ओढ़े हैं। तो जो मैं ओढ़े है, वह तो यह ले न जा सकेगा। तो कम्बल को दूर रखकर सरककर सो गया।
चोर बड़ा हैरान हुआ कि आदमी कैसा है ! घर में कुछ है भी नहीं, एक कम्बल ही दिखायी पड़ता है, वह भी अलग रखकर अलग क्यों सो गया मुझे देखकर । वह लौटने लगा तो रिन्झाई ने कहा, ऐसे खाली हाथ मत जाओ। मन में पीड़ा रह जायेगी। कभी तो कोई चोरी
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