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ये चार शत्रु
की धड़कन का ग्राफ आता है, वैसे ही ग्राफ में ब्रेक आ जायेगा, झटका आ जायेगा । वह झटका बतायेगा कि किस प्रश्न को आपने झूठा उत्तर दिया है। __तो इन सज्जन को लाई डिटेक्टर पर खड़ा किया गया, कि अगर यह आदमी झूठ बोल रहा है तो पकड़ जायेगा । यह भीतर गहन में तो जानता ही होगा कि मैं अब्राहम लिंकन नहीं हूं। वह आदमी भी परेशान हो गया था, यह सब इलाज, चिकित्सा, समझाने से । उसने
आज तय कर लिया था कि ठीक है, आज मान लूंगा । जो कहते हो, वही ठीक है। ___ पूछे बहुत से प्रश्न । फिर पूछा गया कि तुम्हारा नाम क्या अब्राहम लिंकन है? उसने कहा, नहीं। और मशीन ने नीचे बताया कि यह आदमी झूठ बोल रहा है। तब तो मनोचिकित्सक ने भी सिर ठोंक लिया। उसने कहा, अब कोई उपाय ही न रहा। आखिरी हद्द हो गयी। वह लाई डिटेक्टर कह रहा है कि यह झूठ बोल रहा है। क्योंकि भीतर तो उसे आया हां, लेकिन कब तक इस उपद्रव में पड़ा रहं, एक दफा न कहकर झंझट छुड़ाऊं । उसने ऊपर से कहा कि नहीं, मैं अब्राहम लिंकन नहीं हूं। ___ इस आदमी के लिए क्या किया जाये? तो शाक ट्रीटमेंट है, अब कोई उपाय नहीं। ऐसे आदमी के मस्तिष्क को बिजली से धक्का पहुंचाना पड़ेगा। धक्के का एक ही उपयोग है कि वह जो सतत धारा चल रही है कि मैं अब्राहम लिंकन हं, मैं अब्राहम लिंकन हं, उस धारा को समझाने से कोई उपाय नहीं है, क्योंकि धारा उससे टूटती नहीं। बिजली के धक्के से वह धारा ट जायेगी, छिन्न-भिन्न हो जायेगी। एक क्षण को, इस आदमी के भीतर का जो सातत्य है वह खण्डित हो जायेगा, गैप, अंतराल हो जायेगा। शायद उस गैप के कारण बारा इसको खयाल न आये कि मैं अब्राहम लिंकन हूं। इसलिए मनोविज्ञान अब शाक ट्रीटमेंट का उपयोग करता है। अंतिम उपाय वही है। धक्का पहुंचाकर स्नायु तंतुओं की धारा को तोड़ देना । झेन गुरु बहुत प्राचीन समय से, हजार साल से, डेढ़ हजार साल से उसका उपयोग कर रहे हैं। यह जो शिष्य के साथ झेन गुरु का इतना तीव्र हिंसात्मक दिखायी पड़नेवाला व्यवहार है, यह तो कुछ भी नहीं है। ___ एक झेन गुरु बांकेई की आदत थी कि जब भी वह ईश्वर के बाबत कुछ बोलता तो एक उंगली ऊपर उठाकर इशारा करता । जैसा कि अकसर हो जाता है, जहां गुरु और शिष्य, एक दूसरे को प्रेम करते हैं, शिष्य पीठ पीछे गुरु की मजाक भी करते हैं। यह बहुत आत्मीय निकटता होती है, तब ऐसा हो जाता है। इतना परायापन भी नहीं होता कि...
तो वह जो उसकी आदत थी उंगली ऊपर उठाकर बात करने की सदा, यह मजाक का विषय बन गयी थी, जब कोई बात कहता शिष्यों में, तो वह उंगली ऊपर उठा देता । उसमें एक छोटा बच्चा भी था, जो आश्रम में झाडू-बुहारी लगाने का काम करता था। वह भी बड़े-बड़े साधकों के बीच कभी-कभी ध्यान करने बैठता था, और जो बड़ों से नहीं हो पाता था, वह उससे हो रहा था। क्योंकि छोटे बच्चे अभी सरल हैं, बूढ़े जटिल हैं। बूढ़े काफी बीमारी में आगे जा चुके हैं, बच्चे अभी बीमारी की शुरुआत में हैं। उसे ध्यान भी होने लगा था, और वह अपनी उंगली को उठाकर गुरु जैसी चर्चा भी करने लगा था। __ एक दिन सब बैठे थे और बांकेई ने कहा, 'ईश्वर के संबंध में कुछ बोल'–उस बच्चे से। उसने कहा, ईश्वर । उसकी उंगलियां अनजाने ऊपर उठ गयीं। वह भूल गया कि गुरु मौजूद है। मजाक पीछे चलता है, सामने नहीं । जल्दी से उसने उंगली छिपाई, लेकिन गुरु ने कहा, नहीं, पास आ । ___ चाकू पास में पड़ा था, उठाकर उसकी उंगली काट दी। चीख निकल गयी उस बच्चे के मुंह से। हाथ में खून की धारा निकल गयी। बांकेई ने कहा, अब ईश्वर के संबंध में बोल! उस बच्चे ने अपनी टूटी हुई उंगली वापस उठायी, और बांकेई ने कहा कि तुझे जो पाना था, वह पा लिया है।
वह दर्द खो गया, वह पीड़ा मिट गयी । एक नये लोक का प्रारंभ हो गया। बड़ा गहन शाक ट्रीटमेंट हुआ। आज शरीर व्यर्थ हो गया।
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