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ये चार शत्रु दिन तैयारी हो जाये निजी बातें सुनने की, उस दिन मेरे पास आ जाना। क्योंकि निजी बातें निजता में ही कही जा सकती हैं, पब्लिक में नहीं। मगर उसके पहले कसौटी से गुजरना पड़ेगा। बहादुरी की मैं जांच कर लूंगा। चूंकि क्या मैं आपको दूं, यह आपके पात्र की क्षमता पर निर्भर है। __मेरे निजी जीवन में कुछ भी छिपाने जैसा नहीं है, लेकिन आप देख भी पायेंगे, समझ भी पायेंगे, उसका उपयोग भी कर पायेंगे, आपके जीवन में वह सृजनात्मक भी होगा, सहयोगी भी होगा, यह सोचना जरूरी है। क्योंकि जो भी मैं कह रहा हूं, वह आपके काम पड़ सके, तो ही उसका कोई अर्थ है।
तो जिसकी भी तैयारी हो मेरे निजी जीवन में उतरने की, वह जरूर मेरे पास आ जाये । लेकिन उसे तैयारी से गुजरना पड़ेगा, यह खयाल रखकर आये। अभी तो दस्तखत करने की भी हिम्मत नहीं है।
अब हम सूत्र लें। 'क्रोध, मान, माया और लोभ ये चारों काले कुत्सित कषाय पुनर्जन्मरूपी संसार वृक्ष की जड़ों को सींचते रहते हैं।'
'चावल और जौ आदि धान्यों तथा सुवर्ण और पशुओं से परिपूर्ण यह समस्त पृथ्वी भी लोभी मनुष्य को तृप्त कर सकने में असमर्थ है, यह जानकर संयम का आचरण करना चाहिये।' __ चार कषाय महावीर ने कहे-क्रोध, मान, माया, लोभ । ये चारों शब्द हमारे बहुत परिचित हैं-शब्द । ये चारों बिलकुल अपरिचित हैं। शब्द के परिचय को हम भूल से सत्य का परिचय समझ लेते हैं। हम सभी को मालूम है, क्रोध का क्या मतलब है? और क्रोध से हमारा मिलना हुआ नहीं। हालांकि क्रोध हम पर हुआ है बहुत बार, हमसे हुआ है । क्रोध में हम डूबे हैं। लेकिन क्रोध इतना डुबा लेता है कि जो देखने की तटस्थता चाहिए, जो क्रोध को समझने की दूरी चाहिए वह नहीं बचती । इसलिए क्रोध हमसे हुआ है लेकिन क्रोध को हमने जाना नहीं । हमारे क्रोध को दूसरों ने जाना होगा, हमने नहीं जाना । इसलिए मजे की घटना घटती है । क्रोधी आदमी भी अपने
घी नहीं समझता। सारी दुनिया जानती हैं कि वह क्रोधी है, लेकिन वह भर नहीं जानता है कि मैं क्रोधी हूँ। क्या मामला है? सब देख लेते हैं क्रोध को, वह खुद क्यों नहीं देख पाता? ___ असल में क्रोध की घटना में वह मौजूद ही नहीं रहता । वह जो आब्जर्वर है, निरीक्षक है, वह डूब जाता है। उसका कोई पता ही नहीं रहता । बाकी तो कोई क्रोध में नहीं है इसलिए वे लोग देख लेते हैं कि यह आदमी क्रोध में है। आपको पता नहीं चलता। यह बात इतनी भी दब सकती है गहन, कि कई तथ्य जो वैज्ञानिक हो सकते थे वे भी खो गये हैं। ___मैं कल ही एक लियोनल टाइगर की एक किताब देख रहा था। उसने बड़ी महत्वपूर्ण खोज की है। उसने काम किया है स्त्रियों के मासिक-धर्म पर । तो वह कहता है कि जब मासिक-धर्म के चार-पांच दिन होते हैं, तब स्त्रियां ज्यादा क्रोधी होती हैं। ज्यादा चिड़चिड़ी होती हैं, ज्यादा परेशान होती हैं, ज्यादा हिंसक हो जाती हैं। उनकी सारी वृत्तियां निम्न हो जाती हैं । न केवल इतना, बल्कि उन पांच दिनों में उनका बौद्धिक स्तर भी गिर जाता है, उनकी इन्टेलिजेंस भी गिर जाती है । उनका आई-क्यू, उनका जो बुद्धि-माप है वह नीचे गिर जाता है, पंद्रह प्रतिशत।
इसलिए परीक्षा के समय स्त्रियों के लिए विशेष सुविधा होनी चाहिए । मेंसेस में किसी लड़की की परीक्षा नहीं होनी चाहिए, अकारण पिछड़ जायेगी। ठीक पीरिएड के मध्य में, पिछले पीरिएड और दूसरे पीरिएड के ठीक बीच में चौदह दिन के बाद स्त्रियों के पास सबसे ज्यादा प्रसन्न भाव होता है और उस समय वे कम क्रोधी होती हैं, कम चिड़चिड़ी होती हैं। और उस समय उनका बुद्धि-माप पंद्रह प्रतिशत बढ़ जाता है। इसलिए अगर मध्य पीरिएड में लड़की हो और लड़के के साथ परीक्षा दे तो वह फायदे में रहेगी, पंद्रह प्रतिशत ज्यादा।
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