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लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन
(५८) संज्ञित - जिसको संज्ञा होती है वह संज्ञित कहलाता है । ( ३.५८०)
(५६) संहनन - अस्थियों के सम्बन्ध से संयुक्त अंगों का स्वरूप संहनन कहलाता है। यह संहनन दृढ़ता की कमी अधिकता आदि की विशिष्टता वाला होता है । ( ३.३६८)
(६०) श्रुतज्ञान - श्रूयते तत् श्रुतम् - ऐसी श्रुत की व्युत्पत्ति है। श्रुत अर्थात् शब्द। यह शब्द ही श्रुतज्ञान है अथवा यह श्रुतज्ञान भावश्रुत का हेतु है । इससे यदि हेतु के विषय का उपचार करें तो ‘श्रुतात् शब्दात् ज्ञानम् श्रुतज्ञानम्' यह अर्थ भी किया जा सकता है। ( ३.७६५-७६६)