________________
लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन यह स्वरूप व्यवहार नय से कहा जाता है। (१.२१, २२ एवं २३) निश्चय नय से अनन्त सूक्ष्म परमाणुओं वाला एक स्कन्ध कहलाता है। परमाणु द्रव्य से अनन्त द्रव्यरूप है, क्षेत्र से लोक प्रमाण रूप है। काल से शाश्वत है। भाव से वर्ण आदि भाव से युक्त है। गुण से यह ग्रहण गुण वाला है क्योंकि छह द्रव्यों में इसके द्वारा ही ग्रहण किया जाता है, अन्य किसी से नहीं। (११. २, ३ एवं ४) परमाणु अप्रदेशी और केवलज्ञान का ही गोचर है। यह कार्य द्वारा अनुमेय है, स्वयं किसी का
कार्य नहीं है, किसी न किसी का कारण है। (११.११) (३५) पर्याप्ति- जीवों के आहारादि पुद्गलों को ग्रहण करके उन्हें पुनः शरीर, इन्द्रिय आदि में
परिणमित करने की शक्ति का नाम पर्याप्ति है। (३.१५) (३६) परिणाम- पदार्थ की विविध प्रकार की परिणति या रूपान्तरण परिणाम कहलाता है। यथा
मिट्टी आदि पदार्थ का कुम्भ आदि में रूपान्तर होना कुम्भादि परिणाम कहलाता है। (२८.
५६) (३७) परीषह- अरति मोहनीय कर्म के उदय से अरति परीषह होता है। जुगुप्सा मोहनीय कर्म के
उदय से लज्जा देने वाला अचेल (वस्त्र रहित) होना भी परीषह होता है। (३०.३६६) परीषह २२ प्रकार के होते हैं- क्षुधा, पिपासा, शीत, उष्ण, दंश, अचेल, अरति, स्त्री, चर्या, नैषेधिकी, शय्या, आक्रोश, वध, याचना, रोग, अलाभ, तृण, स्पर्श, सत्कार, मलिनांगता, प्रज्ञा, अज्ञान
और सम्यक्त्व। (३०.३६४ एवं ३६५) (३८) प्रतरांगुल- सूच्यंगुल को सूच्यंगुल से गुणा करने से प्रतरांगुल माप आता है। (१.५०) (३६) प्रदेश- अविभाज्य और केवल स्कन्थबद्ध जो परमाणु प्रमाण विभाग है वह प्रदेश है। (११.६) (४०) प्रमाणांगुल- एक उत्सेध अंगुल से चार सौ गुणा लम्बा ओर अढ़ाई गुना चौड़ा एक प्रमाण
अंगुल होता है। (१.३१) (४१) पूर्व-८४ लाख पूर्वांग का एक पूर्व होता है। एक पूर्व में ७० लाख ५६ हजार करोड़ वर्ष होते
हैं। (२६.४ एवं ५) (४२) पूर्वांग-८४ लाख वर्ष का पूर्वांग कहलाता है। (२६.४) (४३) बादर- बादर नामकर्म के उदय से स्थूल रूप प्राप्त किया हो एवं चर्मचक्षु से दिखता हो
उसका नाम बादर है। (५.३) (४४) भवस्थिति- भवस्थिति अर्थात् एक भव या जन्म का आयुष्य। (३.६८)