Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
View full book text
________________
( २३ )
दण्ड दिलाता है । जैसे राजा जिन पुरुषों के द्वारा अपराधियों को दण्ड दिलाता है, वे पुरुष अपराधी नहीं कहे जाते, क्योंकि वे राजा की आज्ञा का पालन करते हैं। इसी तरह किसी का घात करने वाला घातक भी जिसका घात करता है, उसके पूर्वकृत कर्मों का फल भुगतवाता है, क्योंकि ईश्वर ने उसके पूर्वकृत कर्मों की यही सजा नियत की होगी, तभी तो उसका वध किया गया है । यदि कहा जाय कि मनुष्य कर्म करने में स्वतन्त्र है अतः घातक का कार्य ईश्वर प्रेरित नहीं है किन्तु उसकी स्वतन्त्र इच्छा का परिणाम है तो कहना होगा कि संसार दशा में कोई भी प्राणी वस्तुतः स्वतन्त्र नहीं, सभी अपनेअपने कर्मों से बंधे हुए हैं- "कर्मणा बध्यते जन्तु" (महाभारत) और कर्म की अनादि परम्परा है। ऐसी परिस्थिति में 'बुद्धि कर्मानुसारिणी' अर्थात् कर्म के अनुसार प्राणी को बुद्धि होती है, के न्यायानुसार किसी भी काम को करने या न करने के लिए मनुष्य स्वतन्त्र नहीं है ।
इस स्थिति में यह कहा जाय कि ऐसी दशा में तो कोई भी व्यक्ति मुक्ति लाभ नहीं कर सकेगा क्योंकि जीव कर्म से बंधा हुआ है और कर्म के अनुसार जीव की बुद्धि होती है। किन्तु ऐसा कहना ठीक नहीं है, क्योंकि कर्म अच्छे भी होते हैं और बुरे भी होते हैं अतः अच्छे कर्म का अनुसरण करने वाली बुद्धि मनुष्य को सन्मार्ग की ओर और बुरे कर्म का अनुसरण करने वाली बुद्धि मनुष्य को कुमार्ग पर ले जाती है | सन्मार्ग पर चलने से मुक्ति लाभ और कुमार्ग पर चलने से कर्मबंध होता है । ऐसी दशा में बुद्धि के कर्मानुसारिणी होने से मुक्तिलाभ में कोई बाधा नहीं आती है ।
आत्मा का स्वातन्त्र्य और पारतंत्र्य
साधारणतया कहा जाता है कि आत्मा कर्मों के कर्तृत्व काल में स्वतन्त्र है और भोक्तृत्व काल में परतन्त्र । जैसे कि विष खाने के बारे