________________ पुरोवचन कदाचित् कोई पूछ ले कि "गगन में सूर्य-चन्द्र चमकते हैं"इसमें क्या प्रमाण ? शास्त्र में कहां लिखा है ? अनादिकाल से तो वह नहीं था अब यकायक कहां से पा गया ? कौनसे प्राप्तपुरुषों ने सूर्यचन्द्र का प्रचार किया ? सूर्य-चन्द्र की मान्यता अधिकतर कितनी प्राचीन होगी? उन मान्यता में पीछे से क्या-क्या परिवर्तन हुमा ? मादि-प्रादि। . .. अहो! ये प्रश्न कितने गहरे हैं, कितने कठिन हैं ? कोई सामान्य पुरुष की गुंजाईश है क्या ऐसे प्रश्नों के उत्तर देने की ? ऐसे तात्त्विक (!)प्रश्न करने वालों को तो हाथ जोड़कर यही कहना पड़ेगा, भाई ! तुम्हारे प्रश्न बहुत गहन हैं, कोई सर्वज्ञ ही उनका समाधान कर सकता है। ठीक इसी प्रकार १६वीं शताब्दी में जैन शासन में मूर्तिपूजा के गहन विषय में भी ऐसे ही प्रश्नों की परम्परा बन गयी। बहुत से धुरंधर पण्डितों ने उन प्रश्नों के उत्तर देने का साहस किया, लेकिन प्रश्नकर्ता वर्ग को संतोष हो ऐसा उन तात्त्विक (!) और प्रति गहन (!) प्रश्नों का समाधान कौन करे ? आखिर उन लोगों ने मान लिया-मतिपूजा गलत है, अशास्त्रीय है, आधुनिक है, उसमें किसी प्राप्तपुरुषों की सम्मति नहीं है। / बस ! एक नया सम्प्रदाय बन गया, कुछ नाम रख लिया, कुछ वेष बना लिया, झुकने वाले मिल गये जो झुकाने वालों की तरकीब