________________ [ प्रकरण-८] पूर्वाचार्यों का महान उपकार पूज्य देवद्धिगणि क्षमाश्रमण, नवांगी टीकाकार श्री अभयदेव सूरि महाराज, वादिवेताल श्री शांतसूरि महाराज, श्री मलयगिरि महाराज, श्री शीलांगाचार्यजी, पूज्य श्री हरिभद्रसूरिजी, कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य महाराज, पूज्य श्री मल्लधारी हेमचन्द्राचार्य महाराज आदि अनेकानेक प्रातःस्मरणीय सुगृहीतनामधेय पूर्वाचार्यों ने मागम एवं प्रागमेतर प्राचीन जैन साहित्य को जीवंत रखकर महान उपकार किया है जिसका बदला हम चुका नहीं सकते हैं। इन महान पूर्व पुरुषों ने ही जिनप्रतिमा और जिनमन्दिर द्वारा तथा प्रागमशास्त्रों पर सरल अर्थपूर्ण वृत्ति, चूणि, भाष्य एवं टीकादि रचकर जैन संस्कृति को आज तक जीवंत रखा है। यद्यपि प्राचार्य हस्तीमलजी एवं उनका स्थानकपंथी समुदाय जिनप्रतिमा तथा जिनमंदिर और वृत्ति, चूर्णि, भाष्य एवं टीकादि पर अविश्वास एवं अनादर करते हैं, किन्तु आश्चर्य तो इस बात का है कि इन वृत्ति, चूणि, भाष्य, टीकादि के सहारे बिना वे लोग आगमग्रन्थों का हिन्दी या गुजराती भादि भाषा में सही सही अनुवाद भी नहीं करपाते हैं / फिर भी इन पूर्वाचार्यों की बुराई करने में स्थानकपंथी बाज नहीं पाते हैं / स्थानकपंथी अमोलक ऋषि "शास्त्रोद्धार मीमांसा" पृ० 53 पर लिखते हैं कि