________________ [ 115 ] ही जमालि प्रावि शासन बाह्य हो गये थे, प्राचार्य इस बात को सूक्ष्मता से जानते ही होंगे। क्योंकि खंड 1, पृ० 718 पर वे लिखते हैं कि बहुत कुछ समझाने पर भी जमालि की भगवान के वचनों पर श्रद्धा प्रतीत नहीं हुई और वह भगवान के पास से चला गया। मिथ्यात्व के अभिनिवेश ( दुराग्रह, भूठी जिद्द ) से उसने स्वपर को उन्मार्गगामी बनाया और बिना आलोचना के मरण प्राप्त कर किल्बिषी देव हुआ। ___ मीमांसा-उत्सूत्र भाषण के वज्रपाप के कारण ही जमालि शासन बाह्य हो गया और उसने देव दुर्गति पायी / ऐसा निन्हवों के प्रकरणों को जानने वाले स्थानकपंथी प्राचार्य हस्तीमलजी पागम और आगमेतर प्राचीन जैन साहित्य कथित और पूर्वाचार्यों द्वारा विहित एवं प्ररूपित जिनप्रतिमा, जिनमंदिर, तीर्थों आदि का विरोध करके मिथ्यात्वी जमालि आदि निन्हवों की कोटि में क्यों प्रवेश करते हैं ? क्योंकि जैनधर्म में स्थानकपंथी मत प्रवर्तक लोकाशाह के पहिले जिनमूर्तिपूजा और जिनमंदिर का विरोध किसी जैनाचार्यादि ने किया हो तो प्राचार्य को प्रामाणिकता से प्रस्तुत करना चाहिए। ___ राय बहादुर पंडित श्री गौरीशंकर अोझा अपने “राजपूताना का इतिहास" पृ० 1418 पर लिखते हैं कि 80 स्थानकवासी श्वेताम्बर समुदाय से पृथक् हुए जो मन्दिरों और मूर्तियों को नहीं मानते हैं। उस शाखा के भी दो भेद हैं, जो बारहपन्थी और तेरहपंथी कहलाते है / ढूढियों ( स्थानकपंथी ) का समुदाय बहुत प्राचीन नहीं है, लगभग 300 वर्ष से यह प्रचलित हुआ है।xxx मीमांसा–मूर्ति और मंदिर का विरोध करने वाले श्रीमान् लोकाशाह के गच्छवाले प्राचार्य जो “लोंकागच्छीयाचार्य" के नाम से