Book Title: Kalpit Itihas se Savdhan
Author(s): Bhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 205
________________ [ 156 ] और उसका नाम "जैनधर्म का मौलिक इतिहास" रखना यह एक मनीषी प्राचार्य का भ्रम फैलाने का अप्रमाणिक कृत्य ही है। खंड 1, पृ० 34 पर सम्पादकीय नोंध में गजसिंहजो राठौड़ लिखते हैं कि xxxजैन समाज, खासकर श्वेताम्बर स्थानकवासी समाज में जैनधर्म के प्रामाणिक इतिहास की कमी चिरकाल से खटक रही थी। 888 मीमांसा-"जैन समाज" में इतिहास की कमी है ही नहीं। वसुदेव हिण्डी, पउमचरियं, तिलोय पण्णत्ति, चउवन महापुरिस चरियं, त्रिषष्ठि शलाका पुरुष चरित्र, हरिवंश पुराण आदि अनेक प्रामाणिक प्राचीन इतिहास एवं पागम तथा प्रागमेतर प्राचीन जैन साहित्य, चरित्र अन्थों आदि में प्राचीन जैनाचार्यों द्वारा कथित जैन समाज का प्रमाणिक इतिहास सुव्यवस्थित रीत से सुरक्षित है और सम्मेतशिखर, पावापुरी, गिरनार, शत्रुजय, राणकपुर, आबू, केसरियाजी, कुम्भारियानी, तारंगाजी आदि हजारों तीर्थों एवं लगभग 80 हजार से भी अधिक जिन मन्दिरों के रूप में जैन समाज का इतिहास स्वयं व्यवस्थित है। अत: जैन समाज में इतिहास की कमी खटकने की सम्पादक श्री गजसिंहजी की कथित बात सर्वथा असत्य ही है। प्राचार्य स्वयं खंड-१ [पुरानी प्रावृत्ति] पृ० 6 पर अपनी बात में लिखते हैं कि 888 उपरोक्त पर्यालोचन के बाद यह कहना किंचित्मात्र भी अतिशयोक्ति पूर्ण नहीं होगा कि हमारा जैन इतिहास बहुत गहरी सुदृढ़ नीब पर खड़ा है / यह इधर-उधर की किंवदन्ती या कल्पना के आधार से नहीं पर प्रामाणिक पूर्वाचार्यों की अविरल परम्परा से प्राप्त है / अतः इसकी विश्वसनीयता में लेशमात्र भी शंका की गुंजाइश नहीं रहती।xxx मीमांसा–प्राचार्य के उक्त कथन से भी "जैन समाज में इतिहास की कमी" की गजसिंहजी द्वारा लिखित बात प्रसत्य ही सिद्ध

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