Book Title: Kalpit Itihas se Savdhan
Author(s): Bhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
Publisher: Divya Darshan Trust

View full book text
Previous | Next

Page 221
________________ [ 175 ] . स्वरूप अनुष्ठान सर्व विरति ( चारित्र धर्म ) रूप भावस्तव के कारण होने से द्रव्य स्तव ( द्रव्य पूजा ) है / [ भावस्तव का कारण स्वरूप यह द्रव्यस्तव ( पूजा ) का तीर्थङ्कर भगवान ने भी काम-भोग की तरह निषेध नहीं किया है, प्रतः द्रव्य स्तव भगवान को अभिप्रेत-अनुमतइष्ट है ] - चतुर्दश प्रमाण चौदह पूर्वधर श्रुतकेवलज्ञानी श्री भद्रबाहु स्वामी महाराज "श्री प्रावश्यक सूत्र" में लिखते हैं कि-उदायन राजा की प्रभावती राणी ने जिन मन्दिर बनवाया और तीन काल भगवान की पूजा-अर्चना करती थी। यथा 888 अंतेउर चेइयघरं कारियं पभावईए हाताति / संझं अच्चेइ, अन्नया देवी गच्चइ राया वीणा वायेइ // 4 // भावार्थ-प्रभावती राणी ने अपने अंतेपुर ( रहने के महल ) में जिणघर यानी जिनमन्दिर बनवाया। प्रभावती राणी स्नान करके प्रभात-मध्यान्ह एवं सायंकाल तीन वक्त घर में रहा जिनमन्दिर में अर्चा-पूजा करती थी, एकदा राणी प्रभावतो ( भगवान के सामने ) नृत्य करती है और स्वयं राजा वीणा बजाता है पंचदश प्रमाण भगवान श्री महावीर स्वामी के ग्यारह श्रमणोपासक [श्रावक ने जिन प्रतिमा पूजी है / धावक प्रमुख श्री प्रानन्द श्रावक के विषय में श्री उपासक दशांग सूत्र में निम्न पाठ है xxx नो खलु मे भंते ! कम्पइ अज्जप्पभिइंचणं अन्न उत्थिपाका अन्न उस्थिय देवयाणि वा अन्न उत्थिय परिग्गहियाइं "अरिहंत चेइयाई" वा वित्तए वा नमंसित्तए वा। -उबासगदसांग सूतxxx

Loading...

Page Navigation
1 ... 219 220 221 222