Book Title: Kalpit Itihas se Savdhan
Author(s): Bhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 222
________________ [ 176 ] उक्त सूत्र की टीका करते हुए नवांगी टीकाकार श्रीमद् मभयदेव सूरिजी महाराज लिखते हैं कि xxxनो खलु इत्यादि नो खलु मम भदंत ! हे भगवन् ! कल्पते युज्यते अद्य प्रभृति इतः सम्यक्त्व-प्रतिपत्ति-दिनादारभ्य निरतिचारसम्यक्त्व परिपालनार्थ तद्यतनामाश्रित्य अन्नउस्थिएत्ति जैनयूथाद्यन्यद्य थं संघान्तरं तीर्थान्तरमित्यर्थः तदस्ति येषां तेऽन्ययूथिकाः चरकादि कुतीथिकाः तान् मन्ययूथिक दैवतानि हरि-हरादीनि अन्य यूथिक परिगृहितानि वा "अहंच्चत्यानि. अहंतुप्रतिमा-लक्षणानि" यथा मौत परिगृहितानि वीरभव-महाकालादिनि बन्चितुवा अभिवादनं कर्तुं नमस्यतु वा प्रगाम पूर्वक प्रयास्तध्वनिभिः गुणोत्कीर्तनं कर्तुम् / श्री उपासक दशांग सूत्र, प्रथमाध्ययनै 444 ____ भावार्थ-हे भगवन् ! मुझे माज में (सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के बाद) निम्न कथित बातें न कल्पे, जिससे मैं (आनन्द प्रावक ) निरतिचार सम्यग्दर्शन का पालन कर सकू।माज से लेकर मुझे जैनसंघ के अन्तर्गत अरिहंत और अरिहंत की प्रतिमा को छोड़कर अन्य तीर्थी चरक प्रादि, अन्य तीर्थी के देव हरि-हरादि और अन्य तीर्थी के ग्रहण किये अरिहंत के चैत्य अर्थात् जिन प्रतिमा को वंदन करना, नमस्कार करना नहीं कल्पे। [ शास्त्र पाठों में जिनाज्ञा विपरीत या शास्त्रकर्ता महर्षियों के अभिप्राय के विपरीत कुछ भी लिखा गया हो तो मिच्छा मि दुकडम् / ] VATI

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