Book Title: Kalpit Itihas se Savdhan
Author(s): Bhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 203
________________ [प्रकरण-३४] स्थानकपंथी समाज में इतिहास को कमी आगम शास्त्र, प्रागमेतर प्राचीन जैन साहित्य भाष्य, वृत्ति, चूणि, टीकादि रूप प्रागमिक सामग्री एवं जमीन में से निकले प्राचीन अवशेष विशेष रूप ऐतिहासिक तथ्यों से यह सर्वथा सत्य सिद्ध हो गया है कि जिन मूर्तियां, चरण पादुका एवं स्तूपादि भगवान महावीर से भी बहुत पहले पूजे जाते थे। जिन मंदिर एवं जिन प्रतिमा विषयक इसी प्रकार प्राचीन प्रामाणिक आधार होते हुए भी प्राचार्य हस्तीमलजी ने कैसा कल्पित, गलत एवं अप्रमाणिक इतिहास लिखा है इसकी मीमांसा पिछले 33 प्रकरणों में हम कर आये हैं / एक माने हुए जैनाचार्य ने पंथमोह में फंसकर अप्रमाणिकता और झूठ का सहारा लेकर जैनधर्म के इतिहास को कलंकित किया है और प्राचार्य पद की गरिमा को कालिमा लगायी है। फिर भी उल्टा चोर कोटवाल को डांटे इस भांति खंड 1 ( पुरानी प्रावृत्ति) अपनी बात पृ० 25 पर प्राचार्य लिखते हैं कि xxx जैन इतिहास के इस प्रकार के प्रामाणिक आधार होने पर भी आधुनिक विद्वान इसको बिना देखे जैनधर्म और तीर्थंकरों के विषय में धान्तिपूर्ण लेख लिख डालते हैं, यह आश्चर्य एवं खेद की बात है। इतिहासज्ञ

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