________________ [ प्रकरण-३५ ] परिशिष्ट मूर्तिपूजा में शास्त्रों को सम्मति प्रथम प्रमाण श्री ज्ञाताधर्म कथा नामक प्रागमसूत्र के छठे अध्ययन में द्रौपदी ने जिन पूजा की थी, ऐसा स्पष्ट कथन है। जिससे श्री नेमिनाथ भगवान के काल में भी जिनमूर्ति पूजा थी, यह बात सिद्ध होती है / श्री ज्ञाताधर्म कथा सूत्र कथित पाठ इस प्रकार है xxx तएणं सा दोवई रायवर कन्ना जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छइत्ता मज्जणघरमणुप्पविसइ, अणुपविसइत्ता व्हाया कयनलिकम्मा कयकोउयमंगलपायच्छित्ता सुद्धपावेसाई मंगलाई वत्थाई पवर परिहिया मज्जणघराओ पडिमिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव जिणघरे तेणेव उवापच्छइ, उवागच्छइत्ता जिणघरं अणुपबिसइ, अणुपविसइत्ता आलोए जिणपडिमाणं पणाम करेइ, पणामं करेइत्ता लोमहत्थयं परामुसइ, एवं जहा सूरियाभो जिणपडिमाओ अच्चेइ तहेव भाणियव्वं जाव धूवं डहइ, धूवं डहइत्ता वामं जाणु अंचेइ, अंचेइत्ता दाहिणं जाणुधरणीतलंसि णिवेसेइ, णिवेसित्ता तिखुत्तो मुद्धाण धराणीतलंसि, नमेइ, नमयित्ता इसि पच्चुणमइ करयल जाव कट्ट एवं वयासि नमोत्थुणं अरिहंताणं भगवंताणं जाव संपत्ताणं बंदइ नमसइ जिणघराओ पडिणिक्खमइ / [ सूत्र 11-9 ] xxx