________________ [ 170 ] अर्थ-जिन मंदिरों से पृथ्वी को मंडित ( सुशोभित ) करके, दानादिक चारों ( दान, शील, तप और भावना ) धर्म करके श्रावक यावत् बारहवें देवलोक तक जावें। सप्तम प्रमाण श्री पावश्यक सूत्र में वग्गुर नामक श्रावक ने श्री पुरिमताल नगर में श्री मल्लिनाथजी का जिनमंदिर बनवाकर, सम्पूर्ण परिवार सहित जिनपूजा की ऐसा अधिकार प्राता है / यथा तत्तोय पुरिमेताल, वग्गुर-इसाण प्रच्चए पडिमं / मल्लिजिणाययण पडिमा, अन्नाएवंसिवहुगोठी / / अष्टम प्रमाण मागमेतर साहित्य में सबसे प्राचीन जैन ग्रन्थ "उपदेशमाला", जो श्री महावीर भगवान के हस्त दीक्षित श्री धर्मदासगणि महाराज विरचित है, उसमें लिखा है कि Xxx निक्खमण - नाण - निव्वाण, जम्मभूमीउ वंदइ जिणाणं // 236 // xxx मर्थः-श्रावक को ( जैनों को ) तीर्थङ्कर भगवान सम्बन्धि जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान पौर निर्वाण ( मोक्ष ) प्रादि पवित्र कल्याणक भूमि की वंदना-स्पर्शना करनी चाहिए / इसी उपदेशमाला के श्लोक 242 में लिखा है किxxx साहूर्ण चेइयाग य, पडणीयं तह य अवयवायं च / ____ निणपवयनस्स अहियं, सव्वत्थामेण बारेई 1000