Book Title: Kalpit Itihas se Savdhan
Author(s): Bhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 214
________________ [ 168 ] अर्थ-प्रथम (सामान्य से) सूत्र और अर्थ का कथन करना, दूसरा नियुक्ति के साथ अर्थ देना (अर्थ करना ) और तीसरी बार निविशेष अर्थात् सम्पूर्ण (पूरा पूरा ) अर्थ देना (करना)। .. [ इस पागम पाठ में तीसरे प्रकार की व्याख्या में भाष्य, चूणि, टीका मादि के सहारे से सूत्रार्थ करना ऐसा साफ लिखा हुप्रा है। पञ्चम प्रमाण श्री महाकल्पसूत्र नामक उत्कालिक सूत्र में [ जिस सूत्र का नाम कथन श्री नन्दीसूत्र में भी है ] लिखा है कि-साधु और श्रावक जिन मन्दिर में नित्य जावें / अगर नहीं जावें तो प्रायच्छित लगता है, ऐसा श्री महावीर स्वामी ने गौतम स्वामी गणधर महाराज के प्रश्न के उत्तर में कहा है / यथा xxx से भयवं ! 'तहाएवं समणं वा माहणं वा चेइयघरे गच्छेज्जा ? हंता गोयमा ! दिरणे दिणे गच्छेज्जा। से भयवं! जत्थ दिणे ण गच्छेज्जा तओ किं पायच्छित् हवेज्जा ? गोयमा ! पमायं पडुच्च तहारुवं समणं वा माहणं वा जो जिणघरं न गच्छेज्जा तओ छठु अहवा दुवालसमं पायच्छित्तं हवेज्जा / से भयवं ! समणोवासगस्स पोसहसालाए पोसहिए पोसह वंभयारि कि जिणघरं गच्छेज्जा? हंता, गोयमा ! गच्छेज्जा। से भयवं! केणगं गच्छेज्जा ? गोयमा ! गाण दंसण चरणट्ठाए गच्छेज्जा / जे कोई पोसहसालाए पोसह बंभयारी जओ जिघहरे न गच्छेज्जा तओ कि पायच्छित्तं हवेज्जा ? गोयमा ! जहा साहू तहा भाणियग्वं, छ8 अहवा दुवालसमं पायच्छित्तं हवेज्जा। .... ...[श्री महाकल्पसूत्र शास्त्र ] xxx

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