Book Title: Kalpit Itihas se Savdhan
Author(s): Bhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 213
________________ [ 167 ] "नमस्कार हो अरिहंत भगवन्तों को यावत् जो सिद्धिगति को प्राप्त किये हुए हैं उनको" इत्यादि चंदन नमस्कार करता है, वंदन-नमस्कार करके जहाँ देवछंदक है, जहाँ सिद्धायतन का मध्यभाग है वहाँ जाता है। [ श्री राजप्रश्नीय सूत्र] - तृतीय प्रमाणश्री अंगचूलिया नामक कालिक सूत्र [ जिसका उल्लेख श्री नंदीसूत्र कथित 73 सूत्र में है ] में कहा है कि सर्वसावद्य त्याग रूप दीक्षा जिनमन्दिर में देनी चाहिए / यथा 888 तिहि नखस मुहूता रविजोगाइयं पसन्न दिवसे अप्पा वोसिरामि / “जिणभवणाइ" पहाणखित गुरु वंदिता भणइ इच्छकारि तुम्हे अन्हं पंच महाव्बयाई राइनोयन वेरमणं छट्ठाई आरोवावणिया। .. [श्री अंगचूलिया सूत्तं ] 80x अर्थ-तिथि, नक्षत्र, मुहूर्त, रवियोग प्रादि योग युक्त प्रशस्त शुभदिन को ( मुमुक्षु ) अपनी प्रात्मा को पाप से वोसिरावे ( त्यागे ), सो जिनभवन ( जिनमन्दिर ) आदि प्रधान ( श्रेष्ठ ) क्षेत्र में गुरु को वंदना करके कहे- 'प्रसाद करके पाप मुझको पंच महाव्रत और छटा रात्रिभोजन विरमणव्रत प्रारोपण करो ( देवो)। चतुर्थ प्रमाण श्री भगवतीसूत्र में नियुक्ति, टीका आदि को मानने का निर्देश किया है / यथाxxx सुत्तत्थो खलु पढमो, बीओ निज्जुत्ति मिस्सओ भणिओ, तइओय निरविसेसो / एस विहि होई अणुओगो। -श्री भगवती सूत्र, 25 वां शतक, तीसरा उद्देशाxxx

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