Book Title: Kalpit Itihas se Savdhan
Author(s): Bhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 188
________________ [ 144 ] करने और सत्य का प्रकाश करने की दृष्टि से भी बड़ी महत्वपूर्ण है, इस तथ्य को प्राचार्य क्यों भूल जाते हैं ? तथा “यह सामग्री प्राचीन एवं प्रामाणिक होने के कारण बड़ी विश्वसनीय है।" ऐसा लिखने में भी वे कपट ही कर रहे हैं क्योंकि आगम एवं प्रागमेतर प्राचीन जैन साहित्य वृत्ति, चूर्णि, भाष्य एवं टीकादि ग्रन्थ जिनप्रतिमापूजा की पुष्टि करते हैं और ध्वंसावशेष से इस तथ्य की सत्यता में चार चांद लग गये हैं, फिर भी स्थानकपंथी और प्राचार्य हस्तीमलजी इस तथ्य की ओर आँखें बन्द कर बैठे हुए हैं सत्य कहा है कि उल्लू को प्रकाश भी बुरा लगता है / जैन इतिहास की सत्यता का सुन्दरतम वर्णन तो एक अभव्य व्यक्ति भी कर सकता है किन्तु सच्ची श्रद्धा पूर्वक अपने दिल में सत्य की स्थापना नहीं करने के कारण उनकी ऐसी सत्य प्ररूपणा की कीमत फटी कौड़ी की भी नहीं रह जाती है, क्या इस तथ्य से प्राचार्य अनभिज्ञ नहीं हैं ? इतिहास लेखन द्वारा सत्य गवेषणा करके जिनप्रतिमा और जिनमंदिरादि का सत्य तथ्य यदि आचार्य अपने दिल में श्रद्धा और भक्ति पूर्वक स्थापन नहीं करेंगे तो उनका इतिहास का लेखन उनके लिये आत्मवंचना ही होगा, क्योंकि प्रश्रद्धा पूर्वक की गई सब सत् चेष्टाएँ भी जैनागमों में संसार वर्धक ही मानी गई हैं। कंकाली टीले में से निकले हुए प्राचीन अवशेषों से प्राचार्य हस्तीमलजी ने कल्पसूत्र एवं नन्दीसूत्र की स्थविरावलियों को प्रामाणिक और विश्वसनीय सिद्ध किया है, किन्तु मूर्तिमान्यता के विषय में एक शब्द भी लिखना उन्हें अभिष्ट नहीं है, जिसका हमें खेद है / एक प्राचार्य पदारूढ़ इतिहासकार प्रामाणिकता और तटस्थता की प्रतिज्ञा करने पर भी इतनी धृष्टता करे क्या यह खेद की बात नहीं है ? खंड 2, पृ० 32 पर टिप्पणी नोंध में प्राचार्य की कपट वचन रचना इस प्रकार है

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