Book Title: Kalpit Itihas se Savdhan
Author(s): Bhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 193
________________ [प्रकरण-३२ ] भक्तामर प्रौर कल्याणमंदिर स्तोत्र पूज्य सिद्धसेन सूरिज़ी ने आगमिक शास्त्रों को प्राकृत भाषा में से विद्वद्भोग्य संस्कृत भाषा में करने के विचार मात्र को गुरु के आगे वाणी द्वारा प्रगट करने पर गुरु ने उन्हें पारांचित प्रायश्चित दिया था। क्योंकि सर्वज्ञ वचनों पर एवं सर्वज्ञों की एक भी क्रिया पर प्रश्रद्धा प्रगट करना महा अपराध है / सर्वज्ञों ने प्राकृत भाषा में जो वाणी कही है वह पाबाल गोपाल के हित के लिये ही कही है, फिर भी उस वाणी को पंडित भोग्य संस्कृत भाषा में परिवर्तन करने का स्वतन्त्र, जिनाज्ञानिरपेक्ष विचार मात्र प्रगट करने पर धुरंधर विद्वान श्री सिद्धसेनसूरि दिवाकर को पारांचित प्रायश्चित गुरु ने दिया था। इस प्रायश्चित में बारह साल तक वेष छिपाकर रहना होता है और अपने ज्ञानादि गुणों से किसी राजा आदि को जैनधर्म में प्रतिबोध करने पर इसकी समाप्ति होती है। पारांचित प्रायश्चित वहन करने के काल में पूज्य सिद्धसेनसूरिजी ने राजा विक्रम को प्रतिबोधित किया था। इस विषय में कथानक इस प्रकार है। गुप्तवेष में पारांचित प्रायश्चित वहन करते करते सूरिजी एक बार शिवमन्दिर में ठहरे / पुजारी के निषेध करमे पर भी प्राचार्य श्री सिद्धसेनजी शिवलिंग के सामने पैर करके सो गये। राजा विक्रम

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