Book Title: Kalpit Itihas se Savdhan
Author(s): Bhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 191
________________ [ 145 ] xxx मथुरा के कंकाली टोले की खुदाई से निकले ई० सन् 83 से 176 तक के आयोग पट्टों, ध्वजस्तम्भों, तोरणों, हरिणगमेषी देव की मूर्ति, सरस्वती की मूर्ति, सर्वतोभद्र प्रतिमाओं, प्रतिमा पट्टों एवं “मूर्तियों की चौकियों" पर उकित शिलालेखों से इस तथ्य की पुष्टि होती है कि वस्तुतः ये दोनों स्थविरावलियां अति प्राचीन ही नहीं, प्रामाणिक भी हैं। 80x मीमांसा–प्राचार्य का हरिणेगमेषी देव की मूर्ति, सरस्वती को मूर्ति ऐसा लिखने के बाद “मूर्तियों की चौकियों" ऐसा लिखना मायाचार ही है, क्योंकि परिशेष न्याय से "मूर्तियों की चौकियों" का अर्थ तो 'तीर्थकर भगवान की मूर्तियों की चौकियों" ही होता है, जो छलकपट पूर्वक न लिखकर प्राचार्य ने पक्षपातपूर्ण वर्तन किया है। फिर खंड 2, पृ० 36 पर टिप्पणी नोंध में 4 हमारी चेष्टा पक्षपात विहीन एवं केवल यह रही है कि वस्तुस्थिति प्रकाश में लायी जार XXX मीमांसा-ऐसा लिखना धोखेबाजी ही है। क्योंकि हरिणैगमेषी देव की मूर्ति, सरस्वती की मूर्ति प्रादि लिखना और तीर्थंकर की मूर्ति लिखने का जहाँ अवसर प्राया वहां "तीर्थंकर भगवान की मूर्तियों की चौकियाँ" ऐसा न लिखकर सिर्फ "मूर्तियों की चौकियाँ" ऐसा लिखना क्या अनूठा मिथ्याचार नहीं है ? / __भगवान का गर्भापहार बालक वर्धमान द्वारा सुमेरु कम्पन आदि के विषय में अन्यों को सत्य वस्तुस्थिति समझाने का प्रयास प्राचार्य ने किया है, ऐसा प्रयास जिन प्रतिमा के विषय में क्यों नहीं किया ? श्री महावीर स्वामी के विषय में 'मांसभक्षण' का भ्रम दूर करने हेतु प्राचार्य ने आगम, प्रागमेतर प्राचीन जैन साहित्य वृत्ति, चूर्णि, भाष्य और टीकादि तथा कोष एवं व्याकरण द्वारा स्पष्टीकरण किया है / वैसा ही प्रयास आगमशास्त्र, प्रागमेतर प्राचीन जैन साहित्य,

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