________________ [ प्रकरण-३३ ] जैन धर्म में मूर्तिपूजा और प्राचीन शिलालेख जिनागम और जिनप्रतिमा-मंदिर ये दो ही श्रेष्ठ साधन जैनधर्म की संस्कृति के प्रचार प्रसार के आधार रहे हैं। इन दोनों श्रेष्ठ मार्गों से ही पूर्वाचार्यों ने जैनधर्म की संस्कृति को आजतक टिकाया है / भूमि की खुदाई द्वारा मिले प्राचीन ध्वंसावशेष मूर्तियां और शिलालेखों ने जैनागम और पागमेतर प्राचीन जैन शास्त्रों कथित जिन मन्दिर और प्रतिमापूजा के सत्य तथ्य को चार चांद लगा दिये हैं / निष्पक्ष इतिहासकार और पुरातत्त्वविद् इन ऐतिहासिक तथ्यों से पूर्णतः सहमत हैं कि जिनमूर्तियां, पादुका एवं स्तूपादि भगवान महावीर से भी बहुत पहिले पूजे जाते थे। __ मथुरा के कंकाली टीले में से मिले प्राचीन ध्वंसावशेष से यह तथ्य भली भांति सिद्ध हो चुका है कि महान सम्राट अशोक (अपरनाम सम्प्रति), बिन्दुसार और चन्द्रगुप्त आदि राजा भी जिनप्रतिमा प्रादि में विश्वास करते थे। खंड 2, पृ० 451 पर प्राचार्य लिखते हैं कि ..... . ................... जिन शिलालेखों को आजतक अशोक के शिलालेखों के नाम से बौद्धधर्म से सम्बन्धित शिलालेख समझा जाता रहा था,