________________ [ 148 ] को बुलाया गया। उस समय श्री सिद्धसेनसूरिजी शिवलिंग के सामने पैर किये ही भगवान की स्तुति बोलने लगे / वे कुछ ही श्लोक बोल पाये थे कि शिवलिंग फटा और उसमें से अद्भुत तेज के साथ श्री पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा प्रगट हुई थी। जिससे राजा विक्रम भी पूज्य सूरिजी की अपार विद्वत्ता से प्रभावित होकर जैनधर्मी बन गया था। भगवान की स्तुति स्वरूप इस स्तोत्र का नाम “कल्याण मन्दिर स्तोत्र" है / जो आज भी जैन समाज में सुप्रसिद्ध है। पागम एवं प्रागमेतर प्राचीन शास्त्र लिखित बातों को आमूलचूल बदलने पर भी ये बातें अाधुनिक चिंतकों के मन में भायेंगी या नहीं यह विचारणीय प्रश्न है, फिर भी आचार्य हस्तीमलजी जैनागमों की बातों को बदलने के समर्थक रहे हैं, क्योंकि खंड 2, पृ० 38-36 प्राक्कथन में वे लिखते हैं कि 444 इस प्रकार बहुत सी चमत्कारिक रूप से चित्रित घटनाओं को भी इस ग्रन्थ में समाविष्ट नहीं किया गया है। मध्ययुगीन अनेक विद्वान ग्रन्थकारों ने सिद्धसेन प्रभृति कतिपय प्रभावक आचार्यों के जीवन चरित्र का आलेखन करते हुए उनके जीवन की कुछ ऐसी चमत्कार पूर्ण घटनाओं का उल्लेख किया है, जिन पर आज के युग के अधिकांश चिंतक किसी भी दशा में विश्वास करने को उद्यत नहीं होते।xxx __ मीमांसा–प्राधुनिक चिंतकों के पक्षधर बनकर प्राचार्य हस्तीमलजी ने पूर्वाचार्यों को जो कि पंचमहाव्रत धारी और सत्य प्रतिज्ञ थे उनको झूठा करने की बगावत की है और आधुनिक चिन्तकों की तुष्टिकरण के लिये सुधारवादी विषेला दृष्टिकोण अपनाया है, फिर भी खंड 2, पृ० 26 प्राक्कथन में प्राचार्य लिखते हैं कि